________________
निरयावलिका )
[ वर्ग-तृतीय
१. सक्थ, २. बल्कल, ३, स्थान, ४. शैय्या - भाण्ड ५. कमंडलु. ६. दण्ड- दारु, ७. और स्वयं इन सातों वस्तुओं को स्थापित कर उसने मधु-घृत और चावलों से हवन किया । चरु से बलि प्रदान की । बलि से वैश्वानर की पूजा की ओर फिर अतिथि पूजा करता है उसके बाद वह स्वयं भोजन करता है ।
( २१७ )
टीका - प्रस्तुत प्रकरण में सोमिल ब्रह्मर्षि द्वारा तापसों के उपकरणों सहित पूर्व दिशा के स्वामी सोमदेव की पूजा का वर्णन विधि सहित किया गया है। साथ में अतिथि पूजा एवं वैश्वानर देव को बलि देने का कथन है ।
प्रस्तुत सूत्र में सोमिल के पारणे का बिस्तार से वर्णन है । वृत्तिकार ने निम्नलिखित शब्दों के अर्थ इस प्रकार किये हैं
उडए
त्ति - उटज :- तापसाश्रमगृहं - अर्थात् तापसों के रहने की कुटिया । कठिणसंकाइयंति - वंशमय तापस-भाजन विशेष ततश्च तस्य संकायिक- "भारोद्वहनयन्त्रम् किढिणसंकायिकम् " - अर्थात् बांस की लकड़ी से बने एक भाजन - विशेष (बंहगी ) को fafढण और शेष भाण्डोपकरण को "संकाइ" कहते हैं ।
पस्थाणे पस्थिति - प्रस्थाने परलोक साधन-मार्गे प्रस्थितं प्रवृत्तं फलाद्याहरणार्थं गमने वा प्रवृत्तम् - परलोक-साधना के मार्ग पर चलते हुए अथवा फलादि लाने के लिये गमन करते हुए ।
दर्भ और कुशा में अन्तर इतना ही है कि दर्भ समूल होती है और कुशा मूल-रहित होती
वेद बड्डू's वडिता - वेदिका देवाचंन स्थानम् वर्धनी बहुकारिका तां प्रयुक्त इति वर्धयति प्रमार्जयति इत्यर्थ: - पूजा के स्थान को झाड़ू से स्वच्छ किया ।
साहेइ - बलि वइस्स देवं करोति त्ति- चरुः भाजन- विशेष । तत्र पच्यमानं द्रव्यमपि चरुरेव तं चरुबलि मित्यर्थः साधयति, बलि वइस्सदेवं त्ति-बलिना वैश्वानरं पूजयति, इत्यर्थः चरु एक भाजन का नाम है, उसमें जो पकाया जाए उसे भी चरु ही कहते हैं, अर्थात् चरु बलि का दूसरा नाम है, वह उसको तैयार करता है फिर पकाकर वैश्वानर की पूजा करता है ।
देव-पिउ-कयकज्जेत - देवानां पितॄणां कयकज्जं - कृतकार्यं - जलाञ्जलि - दानेन - अर्थात् देव और पितरों के निमित्त अंजलि से जल-दान किया ।
स्थान - शब्द से ज्योति स्थान व पात्र स्थान जानना चाहिये ।
उबलेवणं - से गोबर का लेप भौर "आयंते" से जलद्वारा कूड़ा-करकट को दूर करना 'जानना चाहिये ।