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वर्ग-तृतीय ]
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। निरयावलिका
उन में फल फूल आदि चुनकर रखने वाले अथवा प्रतिज्ञा के अनुसार दिशाओं को देखकर तपस्या करने वाले, वृक्ष की छाल धारण करने वाले, बिलों में रहने वाले, पानी में रहने वाले. वृक्षों के मूल में रहने वाले, केवल जल का सेवन करने वाले, केवल वायु का भक्षण करने वाले, शैवाल एक जलीय विशेष घास खाने वाले, जड़ का सेवन करने वाले, कन्द मूल का सेवन करने वाले; नोम आदि वृक्षों की त्वचा का आहार करने वाले, वृक्षों के पत्तों का भोजन करने वाले, फूलों का भोजन करने वाले, केवल फलाहार करने वाले, बोजों का आहार करने वाले, परिटित अर्थात् सड़े हुए कन्द मूल, त्वचा. पत्र, पुष्प और फलों का आहार करने वाले, जलाभिषेक से जिनका शरीर कठोर हो गया है ऐसे तापस सूर्य की आतापना लेने वाले, अंगारों पर रख कर शूल से पकाये कवाब की ग्रहण करनेवाले, कन्दुशौलक नामक चावल पकाने के पात्र में घृत डाल कर शूल पर बनाये कवाब का भोजन ग्रहण करने वाले, अपने शरीर को कष्ट देकर जो जीवन-यापन कर रहे हैं ऐसे तापसों के पास (वह सोमिल ब्राह्मण आता है और आकर विचार करता है) मैं इन तापसों में जो दिशाप्रोक्षक तापस हैं उन दिशा-प्रोक्षक तापसों के पास तापस बनना चाहता हूं। फिर वह दिशाप्रोक्षक तापस के पास आकर प्रवजित हो जाता है, प्रवजित होने के पश्चात् विशेष प्रकार का अभिग्रह धारण करता है, अभिग्रह धारण करके पहला षष्ठक्षपण (दो दिन का उपवास) करता हुआ जीवन-यापन करता है।
टीका-प्रस्तुत सूत्र में लोमिल ब्राह्मण के मिथ्यात्व के उदय के बाद की स्थिति का वर्णन किया गया है, वह किस प्रकार का तापस जोवन ग्रहण करता है कितने प्रकार के तापस होते हैं, इन सभी का विस्तृत वर्णन इस सूत्र में पाया है । तापस-परम्परा के प्राचीन इतिहास पर यह सूत्र अच्छा प्रकाश डालता है। तापसों के अनेक भेद बतलाये गए हैं सभी बानप्रस्थी तापस लोग गंगा-तट पर रहते थे। सोमिल ब्राह्मण ने मित्रों एवं रिश्तेदारों की प्राज्ञा से, पूत्र को घर का उत्तरदायित्व संभाला, उसने दिशाप्रोक्षक तापस परम्परा को चुना। सोमिल ब्राह्मण ने सात्विक तापस परम्परा को चुना, किसी मांसाहारी तापस परम्परा को नहीं चुना। इस बात से सिद्ध होता है कि थोड़े से समय का भी सम्यक्त्व जीवन में मिथ्यात्व को कैसे दबाये रखता है। . .
तपस्या के पारणे के लिए नपस्वी अपनी तपोभूमि के चारों ओर फलों का संग्रह करके रखता है । पारणे का समय माने पर पहले पारणे में पूर्व दिशा में रक्खे हुए फलों का सेवन करके