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निरयावलिका)
(२१३ )
(वर्ग-तृतीय
- पारणा करता है । दूसरे पारणे में दक्षिण दिशा में रक्खे फलों का आसेवन करता है । नीसरे पारणे में पश्चिम दिशा में और चौथे पारणे में उत्तर दिशा में रक्खे हुए फलों को ग्रहण करता है । इस पदति से जिस तपस्या में पारणा किया जाता है उस तपस्या को दिक्-चक्रवाल तपस्या के नाम से पुकारा जाता है । इस तपस्या में पारणे के समय अलग-अलग दिशाओं का अभिग्रह ग्रहण करना जरूरी होता है । इस प्रकार वह दिक्-चक्रवाल तपस्या करता है ।।८।।
मूल-तएणं से सोमिले माहणे रिसी पढमछट्ठक्खमण पारणंसि आयावणभूमीए पच्चोरुहइ, पाचोरुहित्ता बागलवत्थ नियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरस्थिमं दिसि पुक्खेइ, पुक्खित्ता, पुरथिमाए दिसाए सोमें महाराया पत्थाणे पत्थिय अभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि ताणि अणुजायउ-त्ति कटु पुरथिमं दिसं पसरई, पसरित्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि ण ताई गिण्हइ, गिण्हित्ता किढिणसंकाइयं भरेइ, भरित्ता दब्भे य कुसे य पत्तामोडं च समिहाकट्ठाणि य गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं ठवेइ, ठवित्ता वेदि वड्ढई वड्ढित्ता उवले. वणं संमज्जण करेइ, करित्ता दमकलसहत्थगए णेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगं महानइं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करित्ता जलकिडं करेइ, करित्ता जलाभिसेयं करेइ, करित्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवपिउकयकज्जे दमकलसहत्थगए गंगाओ महानईओ पच्चुत्तर इ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उपागच्छइ, उवागच्छित्ता दभेहि य कसेहिं य बालुयाए य वेदि रएइ, रइत्ता सरयं करेइ, करिता अग्गि पाडेइ, पाडित्ता अग्गि संधुक्खेइ, समिहाकट्ठाई पक्खिवइ. पक्खिवित्ता अग्गि उज्जलेइ, उज्जालित्ता अग्गिस्स दाहिणे पासं सांगाई समादहे।