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________________ निरयावलिका) (२०५) विग-तृतीय जाव-यावत्, पुप्फारामा-पुष्पों के बाग, य-और, अणुपुवेणं-अनुक्रम से, सारक्खिज्जमाणा- जीवादि के भय से रक्षा करते हुए, संगोविज्जमाणा-वाय आदि का भय से रक्षा करते हुए, संवड़ियमाणा-सिंचाई करके संवधित करते हुए, आरामा जाया-बाग पैदा हो गए, किण्हा-कृष्ण वर्ण वाले हुए, किण्हाभासा- काली प्रभा वाले, जाव-यावत्, रम्मा-- रमणीक लगने लगे, महामेहनिकुरंबभूया-महामेध के समान काली प्रभा वाले, पत्तिया-पत्तों से युक्त; पुफिया-फूलों से युक्त, फलिया- फलों से युक्त, हरियगरेरिज्जमाणसिरीया- नीले रंग की लक्ष्मी से युक्त, अईव, अईब-अतीव, उवसोभेमाणा, उसोभेमाणा-शोभा पा रहे थे शोभा पाते हुए, चिट्ठति-उत्पन्न हो गए थे ॥७॥ मूलार्थ-तत्पश्चात् वह सोमिल ब्राह्मण किसी समय असाधु-दर्शन से और साधुओं की सम्यक् सेवा न करने के कारण, मिथ्यात्व पर्याय की वृद्धि होने से, सम्यक्त्व पर्याय के क्षीन हो जाने से मिथ्यात्व अंगीकार कर विचरने लगा। तत्पश्चात् वह सोमिल ब्राह्मण एक बार मध्यरात्रि के समय कुटुम्ब - जागरण करते हुए, इस प्रकार विचार करता है कि "निश्चय ही मैं सोमिल ब्राह्मण, वाराणसी के सर्वोच्च ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ हूं। .. तत्पश्चात् मैंने व्रत ग्रहण किये, उनका आचरण किया, वेदों का अध्ययन किया, शादी करके पत्नी लाया, पुत्र उत्पन्न किये, ऋद्धि प्राप्त की, यज्ञार्थ पशुवध किया, स्वयं श्रेष्ठ यज्ञ किए, अब मुझे यही श्रेयस्कर है यावत् मैं प्रातःकाल सूर्योदय होते ही ' वाराणसी नगरी के बाहर बहुत आमों के बागों को लगाऊं। इसी प्रकार मातुलिङ्गबिजौरा, बेल, कपित्थ, इमली व पुप्प-उद्यान लगाना मेरे लिए श्रेयस्कर है। इस प्रकार विचार कर वह प्रातः यावत् सूर्योदय के समय उठा और उसने वाराणसी नगरी के बाहर आमों के बाग यावत् पुष्प-वाटिकायें लगवाई। फिर बहुत से आमों के बाग यावत् पुष्पों के बागों की, अनुक्रम से, जीवों के भय से रक्षा करते हुए, वायु आदि के भय से संगोपन करते हुए, जल आदि की सिंचाइ की इससे वृक्ष बढ़ने लगे । बाग कृष्णप्रभा से युक्त रमणीक महामेघ के समान काली प्रभा वाले पत्रों, पुष्पों से, फलों से, नील वर्ण की प्रभा से अति मनोहर शोभा से युक्त, अतिउत्तम सुन्दरता को प्राप्त हए ॥ ७॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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