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________________ वर्ग-ततीय ( २०४ ) [निरयावलिका पुत्रा जनिताः, ऋद्धयः समानीताः, पशवधाः कृताः, यज्ञा इष्टाः, दक्षिणा दत्ता,अतिथयः पूजिता, अग्नयो हुताः, यपा निक्षिप्ताः, तच्छ् यः खलु ममेवानी कल्ये यावत् ज्वलंति वाराणस्या नगर्या बहिर्बहून् आम्रारामान् रोपयितुम्, एवं मातुलिङ्गान्, बिल्वान्, कपित्थान, चिञ्चाः, पुष्पारामान रोपयितुम् । एवं संप्रक्षते, संप्रक्ष कल्ये यावत् ज्वलति वाराणस्या नगर्या बहिः आम्रारामांश्च रोपयति । ततः सूल वहवः आम्रारामाश्च यावत् पुष्पारामाश्च अनपूर्वेण संरक्ष्यमाणाः, संगोप्यमानाः, संवद्यमानाः आरामाः जाताः कृष्णा कृष्णावभासा यावत् रम्याः महामेघनकुरम्बिभूताः पत्रिताः पुष्विता। फलिता हरितकराराज्यमानश्रीकाः अतीवातीब उपशोभ माना उपशावमानास्तिष्ठन्ति ।।७।। पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, स सोमिले माहणे-वह सोमिल ब्राह्मण, अण्णया कयाई-अन्य किसी समय, असाहुदसणेण-असाधु दर्शनों के कारण, य अपज्जवासणयाए- पर्यपासना न करने पर, य-और, मिच्छत्तपमवेहि परिवड्ढमाहि-मिथ्यात्व पर्यायों के बढ़ने के कारण और सम्मत्तपज्जवेहि परिहायमाणेहि-सम्यक्त्व - पर्यायों के घटने के कारण, मिच्छत्तं च पडिवन्ने-बह मिथ्यात्व को प्राप्त हो गया। तएणं-तत्पश्चात्, तस्स सोमिलस्स माहणस्स-वह सोमिल ब्राह्मण, अण्णया कयाई-- अन्य किसी समय, पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि-अर्ध रात्रि के समय कुडुम्बजागरियं जागरमाणस्सकटुम्ब की चिन्ता में जागरण करते हुए, अयमेयास्वे-इस प्रकार के, अज्मथिए जाव समुप्पज्जित्था अध्यात्म विचार उत्पन्न हुए यावत्, एवं खलु अहं- इस प्रकार निश्चय ही मैं, वाणारसीए नयरीए-वाराणसी नगरी में, सोमिले नाम माहणे- सोमिल नामक ब्राह्मण, अच्छतमाहणकुलप्पसूए-अत्यन्त उत्तम ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ हूं, तएणं-तत्पश्चात्, मए-मैंने, बयाई चिण्णाई-व्रत ग्रहण कर उनका आचरण किया, वेया य अहीया- मोर वेदों का अध्ययन किया, दारा आहूया-स्त्री से शादी की, पुत्ता जणिया-पुत्र उत्पन्न किए, इड्डोमो समाणीयाओऋद्धियां इकट्ठो की, पसुवधा कया- पशुओं का वध किया, जन्ना जेट्ठा- ज्येष्ठ यज्ञ किये कि, अर्थात् स्वयं यज्ञ किये, दक्षिणा दिन्ना - ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दी, अतिहि पूजिया-अतिथियों को पूजा की, अग्गी हूया-अग्नि-होत्र कर्म किया,बूमा निविश्वत्ता-यज्ञ स्तम्भगाड़ा, तं सेयं-इसलिए श्रेष्ठ है, खलु-निश्चय, मम-मेरे लिये, इयाणि-इस समय, कल्लं जाव जलते-प्रभात काल के उदय होने पर, वाणारसीए नयरीए बहिया-वाराणसी नगरी के बाहर, बहवे-बहुत से, अंबारामाआमों के बाग, रोवावत्तिए -पारोपित किए, एवं-इस प्रकार, माउलिंगा-मातुलिंग-बिजौरा, बिल्ला-बिल्व, कविटा-कपित्य विचा-इमली और, पृष्फारामा-फलों के वाग, रोवावित्तएपारोपित किये, एवं संपेहेइ संहिता-इस प्रकार विचार करता है, विचार करके, कल्लं जाव जलते-कल जावत् प्रातः काल सूर्योदय होने पर, वामारसीए नयरीए बहिया-वाराणसी नगरी के वाहर, अंबारामे-आमों के बाग, जाव-यावत्, पुरफारामे-फूलों के बाग, रोवावेइआरोपित करवाता है, तएणं-तत्पश्चात्, बहवे अंबारामा-बहुत से मामों के बागों, य-और,
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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