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बर्ग-तृतीय]
( २०२)
[निरयावलिका
प्रश्न-कुलत्था भक्ष्य है या अभक्ष्य ? उत्तर-हे सोमिल ! कुलत्था शब्द के दो अर्ष हैं एक है कुलीन स्त्री, दूसरा है धान्य विशेष (कुलत्थ) ।
जो धान्य विशेष शस्त्र-परिणत और याचित है वही श्रमणों के लिये भक्ष्य है शेष अभक्ष्य है। प्रश्न-आप एक हैं या अनेक उत्तर-सोमिल में द्रव्य दृष्टि से एक हूं, ज्ञान-दर्शन रूप दो पर्यायों के प्राधान्य से दो भी हूं।
सोमिल उपयोग एवं स्वभाव को दृष्टि से मैं अनेक हूं !
इस तरह सोमिल ने अव्यय, अवस्थित एवं तोन काल के परिणमन योग्य विषयों पर प्रश्न किये, जिनका समाधान भगवान ने अनेकांत दृष्टिकोण से दिया।
इन प्रश्नों के उत्तरों से यह सोमिल अत्यधिक प्रभावित हुआ। . ..
मूल-तएणं पासे अरहा अन्नया कयाई, वाणारसीओ नयरीयो अम्बसालवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जेणवयविहारं विहरइ ॥६॥
छाया-तत : खलु पार्श्व अर्हन् अन्यदा कदाचिद् वाराणसीतः नगरीतः आम्रशालवनात् उद्यानात् प्रतिनिष्कमति प्रतिनिष्क्रम्य बाह्य जनपदविहारं विहरति । ६।। -
पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, पासे णं अरहा-तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथ अन्नया कपाईअन्य किसी समय, वाणरसीओ नयरीनो अम्बसाल वणामो उज्जाणाओ-बाराणसी नगरी के आम्रशालवन उद्यान से, पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता–बाहर आते हैं और भाकर, बहिया- बाह्य जनपदों में, जणवय-विहारं विहरह-विहार हेतु विचरण करते हैं ॥६॥
- मूलार्थ-तत्पश्चात् भगवान श्री पार्श्वनाथ फिर किसी समय वाराणसी नगरी के आम्रशालवन नामक उद्यान से बाहर आते हैं और फिर अन्य जनपदों में विहार करते हैं, अर्थात् धर्म - प्रचार करते हुए विभिन्न ग्रामों नगरों जनपदों में विचरण करते हैं ॥६॥
टोका-प्रस्तुत सूत्र में तीर्थङ्कर पुरुषादानीय भगवान श्रीपार्श्वनाथ के पुनः वाराणसी नगरी में पधारने का वर्णन है । वे आम्रशालवन उद्यान में ठहरते हैं। फिर ज्ञान, दर्शन चरित्र का उपदेश देकर मन्य जनपदों में घूमते हैं ॥६॥