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________________ ( वर्ग - तृतीय निरयावलिका ] मूलार्थ- (उस सोमिल ब्राह्मण ने प्रश्न किये) भगवन् ! आपकी यात्रा क्या है ? फिर (सोमिल) सरसों, माष कुलत्थ आदि भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं, आदि के विषय में प्रश्न करता है । एक भव में वह संबुद्ध हो कर श्रावक धर्म का पालन करने लगा ||५|| ( २०१ ) टीका प्रस्तुत सूत्र में (श्री पार्श्वनाथ जी के समकालीन) सोमिल ब्राह्मण के प्रश्नों के नाम दिये गये हैं। साथ में भगवान पार्श्व नाथ का उपदेश सुनकर सोमिल के श्रावक धर्म ग्रहण करने का वर्णन है । - सोमिल ब्राह्मण (श्री महावीर कालीन ब्राह्मण) के प्रश्नों के उत्तर भगवती सूत्र के अठारहवें शतक के दसवें उद्देशक में इस प्रकार दिये गये हैं । हम यहां उनका सारांश देते हैं :प्रश्न- क्या आप यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुक विहार करते हैं ? आपकी यात्रा आदि क्या है ? उत्तर- सोमिल ! मैं तप-यम-संयम स्वाध्याय और ध्यान में रमण करता हूं यही मेरी यात्रा है । इन्द्रियानीय, नोइन्द्रिय-यापनीय- पांचों इन्द्रियां मेरे आधीन है और क्रोध, मान आदि कषाय मैंने विच्छिन्न कर दिए हैं, इसलिए वे उदय में नहीं आते। इसलिए में इन्द्रिय और नो इन्द्रिय यापनीय हूं । वात, पित्त, कफ, ये शरीय सम्बन्धी दोष मेरे उपशांत हैं, वे उदय में आते ही नहीं, इसलिए मुझे प्रव्यावाघ भी है । मैं आराम, उद्यान, देवकुल, सभास्थल प्रादि स्थलों पर जहां स्त्री, पशु व नपुंसक का अभाव हो ऐसे निर्दोष स्थान पर आज्ञा ग्रहण कर विहार करता हूं यह मेरा प्रासुक निर्दोष विहार है । प्रश्न - सरिसवया भक्ष्य है या अभक्ष्य ? उत्तर - हे सोमिल ! सरिसवया दो प्रकार का है सदृश-वय समवयस्क व्यक्ति तथा सरसों । सदृशवय तीन प्रकार का है एक साथ जन्मे हुए, एक साथ पालित पोषित हुए अथवा जो साथ - साथ क्रीड़ा करते हैं । ये तीनों श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए प्रभक्ष्य हैं और धान्य सरिसव दो प्रकार का है शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत । शस्त्रपरिणत भी दो प्रकार का है एषणीय और अनेष णी । अनेषणीय अभक्ष्य है । एषणीय भी याचित और अयाचित दो प्रकार का है याचित 1 • मक्ष्य है श्रोर अयाचित अभक्ष्य है । प्रश्न- मास भक्ष्य है या अभक्ष्य ? उत्तर - मास का अर्थ महीना और सोना चांदी मापने का परिणाम मासा भी है ये दोनों तो अभक्ष्य ही हैं माष अर्थात् उड़द जो शस्त्रपरिणत याचित हो वही श्रमणों के लिए भक्ष्य है ।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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