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वर्ग - तृतीय ]
। निरयावलिका
जाव -- यावत्, अंबसालवणे - आम्रशाल वन में, विहरइ - विचरते हैं, तं गच्छामि णं - इसलिए मैं जाता हूं, पासस्स अरहओ - पार्श्वनाथ प्रर्हत के, अन्तिए - समीप, पाउन्भवामि - उपस्थित होता हूं, च-फिर णं - वाक्यालंकार, इमाई एयारूव इं- इस प्रकार के, अट्ठाई - अर्थों को ऊहूं-हेतुओं को, जहा पण्णत्तीए - जैसे व्याख्या प्रज्ञप्ति में वर्णन किया गया है, सोमिलो निग्गओ - सोमिल ब्राह्मण भगवान पार्श्वनाथ के समीप गया खण्डिय विहृणो- छात्रों से रहित गया, जाव - यावत् एवं वयासी- इस प्रकार कहने लगा ||४||
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मूलार्थ - तत्पश्चात् वह सोमिल ब्राह्मण के इस कथा (समाचार) को सुनकर यह भाव उत्पन्न हुए । इस प्रकार पार्श्वनाथ अर्हत् पुरुषादानीय अनुक्रम से विहार करते हुए आम्रशाल उद्यान में विचर रहे हैं। मैं पार्श्व अर्हत् के समीप जाता हूं। इस प्रकार अर्थ और हेतुओं को पूछूंगा । जिस प्रकार व्याख्या - प्रज्ञप्ति में वर्णन किया गया है उसी प्रकार यहां भी जानना चाहिए। वह ( सोमिल) छात्रों से रहित भगवान के समीप आया और इस प्रकार प्रश्न करने लगा ।
टीका - प्रस्तुत सूत्र में सोमिल ब्राह्मण के भगवान पार्श्वनाथ के समीप छात्रों से रहित पहुंचने का वर्णन है। भगवान पार्श्व आम्रशाल उद्यान में पारेघ हैं । जब सोमिल ने यह समाचार सुना तो उसके मन में विचार उत्पन्न हुआ कि मैं क्यों न प्रभु पाइव से प्रश्न पूछूं ।
सोमिल ब्राह्मण के प्रश्नों का वर्णन भगवती सूत्र के अठाहरवें शतक के दसवें उद्देश्य में आया है । सोमिल ब्राह्मण चाहे अपने धर्म का प्रकाण्ड पंडित है पर वह एक जिज्ञासु भी है । क्योंकि जिज्ञासु ही इस प्रकार की प्रवृत्ति के स्वामी होते हैं। जनसाधारण ही वह सब प्रश्न एकान्त में शिष्यों के बिना पूछना चाहता है। ताकि उसकी किसी अज्ञानता का शिष्यों का पता न चल सके। यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है ||४|| *
मूल - जत्ता ते भंते ! ? जवणिज्जं च ते ? पृच्छा, सरिसवया. मासा कुलत्था, एगे भवं, जाव संबुद्ध सावगधम्मं पडिवज्जिता पडिगए ॥ ५ ( |
छाया - यात्रा ते भवन्त !? यापनीयं ते ? पृच्छा सदृशवयसः भाषा, कुलत्था एको भवान् यावत् संबुद्धः श्रावक धमं प्रतिपद्य प्रतिगतः ।
"दार्थान्वयः - जत्ता - यात्रा, ते - क्या, भन्ते - हे भगवन्, जवणिज्जं - यापनीया, चते क्या है, पुच्छा-पूछता है, सरिवसयसा - सामान अवस्था वाला और सरसों, काल उड़द प्रमाण, एगं भव- (एक भव) तबुद्धे - बोधिलाभ प्राप्त कर, सवग धम्मंधर्म का, पडिगए पालन करने लगा ||५||
मासा--- -श्रावक