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________________ वग - तृतीय ] कौन था, भगवान ने उत्तर दिया । एवं खलु गोयमा - इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम, तेणं कालेणं तेणं समयणं - उस काल होत्था - वाराणसो नामक नगरी थी, तत्थ णं-उस, सोमिले नाम माहणे परिवसइ - सोमिल नामक ब्राह्मण ( १६८ ) उस समय में, वाणारसी नाम नयरो वाणारसीए नयरीए - वाराणसी नगरी में, रहता था, अडे - ऋद्धियुक्त, जाब-- यावत् ऋग्वेद आदि में सुप्रतिष्ठत था, पाले पज्जवासइ - परिषद सेवा करने आई । [ कल्पायतं सिका 1 अपरिभूए- अपरिभूत था, रिउव्वेय सुपरिनिट्ठिएसमोसढे - भगवान पार्श्वनाथं समवसृत हुए, परिसा मूलार्थ -ग - गणधर सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया " हे जंबू ! मोक्ष को संप्राप्त श्रमण · भगवान महावीर ने इस प्रकार कहा है. उस काल उस समय एक राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था, श्रेणिक राजा था, वहां श्रमण भगवान महावीर पधारे, समवसरण में धर्म-उपदेश हुआ । परिषद् दर्शनार्थ आई । उस काल उस समय शुक्र नामक महाग्रह शुक्रावतंसक विमान के शुक्र सिंहासन पर चार हजार सामानिक देवों से घिरा भगवान के दर्शन करने आया यावत् जैसे चन्द्रदेव अया था । नाट्य-विधि दिखाकर वह भी चला गया । हे भगवन् ! शुक्र देव की ऋद्धि कहां चली गई ? उत्तर में भगवान कहते हैं कि इसके लिये यावत् कूटागारशाला का दृष्टान्त जानना चाहिए । शुक्र का पूर्व भव क्या था किस कारण से उसे ऐसी ऋद्धि प्राप्त हुई ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर ने कहा हे गौतम! उस काल उस समय में वाराणसी नामक नगरी थी । उस वारासी नगरी में सोमिल नामक ब्राह्मण रहता था। जो ऋद्धिवान व संपन्न था। वह ऋग्वेद आदि (चार वेदों, उपनिषद् इतिहास एवं व्याकरण आदि का ज्ञाता था । वहां भगवान श्री पार्श्वनाथ समवसृत हुए । परिषद् सेवा करने लगी । टीका - प्रस्तुत सूत्र में सूर्य व चन्द्रमा के पश्चात् शुक्र महाग्रह के भगवान महावीर के दर्शनार्थ आने का वर्णन है। शुक्र भी अपनी समस्त देवऋद्धि सहित अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करता है + गणधर गौतम शुक्र का पूर्वभव पूछते हैं उसी के उत्तर में करुणा सागर प्रभु महावीर बताते है कि शुक्र पूर्व भव में वाराणसी का सोमिल ब्राह्मण था वह वेद, उपनिषद्, इतिहास, निघंटु,
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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