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निरयावलिका)
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(वर्ग-तृतीय
पडिगओ । पुत्वभवपुच्छा, सावत्थी नगरी, सुपइठे नाम गाहावई होत्था, अड्ढे, जहेव अंगती जाव विहरति, पासो समोसढे, जहा अंगती तहेव पव्वइए, तहेव विराहियसामन्ने जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहित्ति, एवं खलु जंबू ! समणेणं निक्खेवओ ॥२॥
॥बीयं अज्झयणं समत्तं ॥२॥
छाया. यदि खल भदन्त ! धमणेन भगवता यावत् पुष्पितानां प्रथम्स्य अध्ययनस्य यावत् अयमर्थः प्रज्ञप्तः द्वितीयस्य खल भदन्त ! अध्ययनस्य पुष्पितानां श्रमणेन भगवत यावत् संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन समये राजगृहं नाम नगरं, गणशिंलक चैत्यं,
णिको रामा, समवसरणं यथा चन्द्रः तथा सूरोऽपि आगतो यावत् नाटयविधिमुपदर्य प्रतिगतः । पूर्वभवपृच्छा-श्रावस्ती नगरी सुप्रतिष्ठो नाम गाथापतिरभवत् आख्यः यर्थव अतिर्यावद् विहरति पावः समवसतः, यथा अङ्गतिस्तथैव प्रवजितः तथैव विराधितधामप्यो यावत् महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति यावत् अन्तं करिष्यति, एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन निक्षेपकः ।।२।।
पदार्थान्वयः-जइणं भते-यदि हे भगवन् !, समणेणं भगवया जाव-श्रमण भगवान यावत् मोक्ष संप्राप्त ने, पल्फियाण पढमस्स अज्झयणस्स-पुष्पिका सूत्र के प्रथम अध्ययन का जाव अयम? पन्नत्ते-यह अर्थ प्रतिपादन किया है, दोच्चस्स णं भते अज्झयणस्स पुष्फयाणंदूसरे पुष्पिका अध्ययन का, “समणेण भगवया जाव संपत्तेण-श्रमण भगवान यावत् संप्राप्त ने, के अटै पन्नत्ते -क्या अर्थ प्रतिपादन किया है, एवं खलु जंबू-इस प्रकार निश्चय ही हे जंबू !, तेग कालेणं तेणं समएणं-उस काल उस समय में, रायगिहे नामं नयरे-राजगृही नामक नगर था, गणसिलए चेइए-गुणशील चैत्य 'था, सेणिये राया-श्रेणिक राजा था, समोसरणं-भगवान महावीर का समवसरण हुआ अर्थात् धर्म उपदेश हुआ, जहा चंदो-जैसे चन्द्र देव, तहा-वैसे ही, सूरोऽव आगओ-सूर्य देव भी दर्शनार्थ आया, गव नट्टविहि उवदं सत्ता-उसी प्रकार नाट्य-विधि दिखा कर, पडिगओ-लौट गया, पुटवभव पुच्छा - गणधर गौतम ने सूर्य का पूर्व भव पूछा, सावत्थी नयरी-(भगवान महावीर ने उत्तर दिया) श्रावस्ती नगरी थी, एपइ8 नाम गाहावई होत्या-वहां सुप्रतिष्ठ नाम का गाथापति रहता था, अड्ढे-- ऋद्धिवान था, जहेव अंगती-जैसे, अंगती था, जाव विहरति-वैसे यावत्, विमहरता था, पासो समोसढे-भगवान पार्श्वनाथ धर्म परिवार से घिरे पधारे, जहा अंगतो तहेव पव्व इए-जैसे अङ्गती प्र ब्रजित हुआ था वैसे ही वह भी मुनि बना, तहेव विराहियसामन्ने- उसी प्रसी प्रकार श्रामण्य भाव का विराधक हुआ, जावयावत्, महाविदेहे वासे-- महाविदेह में उत्पन्न होगा, सिमिहिति-सिद्ध होगा, जाव अंतं