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________________ [ वर्ग - तृतीय तत्पश्चात् वह अंगती अनगार अरिहत भगवान श्री पार्श्वनाथ के तथारूप स्थविरों के पास, आचाराङ्ग आदि एकादश अङ्गों का अध्ययन करता है । अध्ययन करने के पश्चात् वह चतुर्थ भक्त करते हुए यावत् आत्मा को सयमादि से भावित करता है । बहुत वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन करता है, पालन करने के पश्चात् अर्ध मास की संलेखना के साथ तीस (३०) भक्तों का छेदन कर भ्रामण्य पर्याय का आराधक बनता है, फिर काल मास में यहां से काल करके चन्द्रावतंस विमान की उपपात सभा में देव शय्या पर देवदृष्य वस्त्र के मध्य में चन्द्र ज्योतिष्क इन्द्र रूप में उत्पन्न हुआ है। निरयावलका ] ( १९३ ) तत्पश्चात् वह चन्द्र ज्योतिष्क इन्द्र, ज्योतिष्क राजा तत्काल उत्पन्न होते ही पांच प्रकार की पर्याप्तियों को प्राप्त हुआ जैसे आहार-पर्याप्ति, शरीर-पर्याप्ति, इन्द्रिय-पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, भाषा तथा मन पर्याप्ति । अब गणधर गौतम ने चन्द्र देव का भविष्य पूछने की दृष्टि से कहा - हे भगवन् ! ज्योतिष्क इन्द्र ! ज्योतिष देवों का राजा चन्द्र देव की कितनी स्थिति वर्णन की गई है ? हे गौतम! लाख वर्ष अधिक पल्योपम की । इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! ज्योतिक राजा यावत् चन्द्रदेव की यह देव ऋद्धि है । गणधर गौतम ने पुनः प्रश्न किया- हे भगवन् चन्द्र ज्योतिष्क राजा ज्योतिष देवों का इन्द्र, इस देवलोक की आयु सम्पूर्ण करके कहां उत्पन्न होगा ? भगवान महावीर ने उत्तर दिया- " हे गौतम ! यह भी महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध गति प्राप्ति करेगा ।" गणधर सुधर्मा अपने प्रिय शिष्य आर्य जंबू से कहते हैं - 'हे जंबू ! श्रमण भगवान यावत् मोक्ष संप्राप्त ने पुष्पिका नामक सूत्र के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। प्रथम अध्ययन समाप्त हुआ ||३||
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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