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[ वर्ग-तृतीय
चन्द्रस्य खलु भवन्त ! ज्योतिरिन्द्रस्य ज्योतिराजस्व कियत्कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! पत्योपमं वर्षशतसहस्राभ्यधिकम् । एवं खलु गौतम ! चन्द्रस्य यावत् ज्योतिराजस्य सा दिव्या देवऋद्धि ० । चन्द्रः खलु भदन्त ! ज्योतिरिन्द्रो ज्योतीराजस्तस्माद्देवलोकादायुःक्षयेण ३ च्युत्वा कुत्र गमिष्यति २ ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति५ । एवं खल जम्ब ! श्रमणन निक्षेपकः ||३|| ॥ इति प्रथमाध्ययनम् ॥
निरयावलिका ।
( १६१ )
पदार्थान्वयः - तेणं कालेणं तेणं समएणं- -उस काल उस समय, पामेणं अरहा - पार्श्व अर्हन्, पुरितादाणीए आदिक - पुरुषों में प्रादरणीय, अपने समय में चारों तीर्थ के संस्थापक, जहा महावीरो - जैसे भगवान महावीर हैं, नवस्सेहे - -नव हाथ शरीर की ऊंचाई वाले, सोलसेहि समणसाहसीहि-सोलह हजार श्रमण निर्गन्धों के अद्वतीस-बत्तीस हजार श्रमणी परिवार के साथ, जाब- यावत्, कोटूक समोसढे - कोष्ठक नामक उद्यान में समवसृत हुए, परिसा निगाया परिषद् दर्शनार्थ घरों से निकल कर आई ।
तर से अंगई गाहावई - तत्पश्चात् वह अंगती गाथापति, हमीसे कहाए लद्वटा० - इस कथा को सुन लेने पर, हट्ठे- हर्षित हुआ, जहा— जैसे, कतिओ सेट्ठी- जैसे कार्तिक सेठ दर्शनार्थं निकला था, तहा निगच्छइ - उसी प्रकार दर्शन करने निकला, जाव - यावत्, पज्जवासइ - उसने पर्युपासना की धम्मं सोच्चा निसम्म - धर्मकथा सुनकर, जं नबरं - जो इतना विशेष है, देवापिया - हे देवानुप्रिय जेट्ठपुत्ते कडुंबे ठावेमि- बड़े पुत्र को घर का भार सौंप कर तणं अहं तत्पश्चात् मैं. देवाणुप्पियाणं जाव पव्वयामि – देवानुप्रिय के पास यावत् प्रव्रजित होता हूं, जहां गंगदत्तो - जैसे गंगदत्त दीक्षित हुआ था, तहा पव्वइए - ऐसे ही प्रव्रजित हुआ, जाव गुत्तबभयारी - यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हुआ ।
तए णं से अंगइ अणगारे - तत्पश्चात् वह अंगती अनगार, पासस्स अरहमो- पार्श्वनाथ अर्हत के पास, तहारूवाणं - तथारूप थेराणं अंतिए - स्थविर भगवंतों के समीप, सामाइयमाया - सामायिक आदि, एक्कारस अंगाई अहिज्जह-- ग्यारह अङ्ग शास्त्रों का अध्ययन करता है, अहिज्जित्ता - अध्ययन करके, बहूह चउत्थ- बहुत प्रकार के चतुर्थ भक्त (व्रत), जाव - यावत्, भावेमाणे- बहूइं वासाई -बहुत वर्षों तक भावित, सामण्णपरियाग पाउणइ - श्रामण्य पर्याय का पालन करता है, पाउणित्ता - पालन करके, अद्धमासियाए संलेहणाए - अर्ध मासिक संलेखना के द्वारा, तीस भत्ताई - तीस भक्त, अणसणाए छेदित्ता - अनशन के छेदन करके, विराहियसामण्णेश्रामण्य पर्याय का विराधक होकर, कालमासे कालं किच्चा - काल मास में काल करके, चंदवडसए विमा - चन्द्रावतंसक विमान में, उववाय सभाए - उपपात सभा में देवसय णिज्जंसि - देव सैय्या के उपर, देवदूतरिए - देवदूष्य नामक वस्त्र के मध्य में चंदे जोइसिबत्ताए उवबन्ने – चन्द्र नामक ज्योतिष देवों के इन्द्र रूप में उत्पन्न हुआ ।