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निरयावलिका
( १८६)
(वर्ग-तृतीय
. कि वे केवल कूटम्ब के हो आश्रय नहीं थे, अपितु समस्त लोगों के भी पाश्रय थे, जैसा कि ऊपर बताया जा चका है । आगे जहां-जहां 'वि' (मपि-भी) आया है वहां सर्वत्र यही तात्पर्य समझना चाहिए। अङ्गति गाथापति अपने कुटुम्ब के भी प्राण थे। अर्थात् जैसे प्रत्यक्ष अनुमान आदि प्रमाण संदेह आदि को दूर करके हेय (त्याग करने योग्य) पदार्थों से निवृत्ति और उपादेय (ग्रहण करने योग्य) पदार्थों को जानते हैं उसी प्रकार अङ्गति भी अपने कुटुम्बियों को बताते थे कि अमुक कार्य करने योग्य है, अमुक कार्य करने योग्य नहीं है, यह पदार्थ ग्राह्य है, यह आग्राह्य है।
___ तथा अङ्गति गाथापति अपने कुटम्ब के भी आधार (प्राश्रय) थे, तथा आलम्बन थे, अर्थात् विपत्ति में पड़ने वाले मनुष्य को रस्सी या स्तम्भ के समान सहारे थे।
अङ्गति अपने कुटुम्ब के चक्षु थे, अर्थात् जैसे चक्षु मार्ग को प्रकाशित करता है वैसे ही अङ्गित कुटुम्बयों के भी समस्त अर्थों के प्रदर्शक (सन्मार्गदर्शक। थे!
दूसरी बार मेधिभूत आदि विशेषण स्पष्ट बोध के लिये हैं। “जाव” शब्द से प्रमाणभूत, अाधारभूत, आलम्बनभूत, चक्षुभूत, इनका संग्रह होता है। यहां स्पष्टता के लिये 'भूत' शब्द अधिक दिया है, इसका तात्पर्य यह है कि अङ्गति गाथापति मेढी अर्थात् मेढो के सदृश थे, प्रमाण अर्थात् प्रमाण के सदृश थे, आधार अर्थात् आधार के सदृश आलम्बन के सदृश थे, चक्षु अर्थात् चक्षु के सदृश थे ; अङ्गति समस्त कार्यों के सम्पादन करनेवाले भी थे ।।१।।
मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं पासेणं अरहा पुरिसा-दाणीए आदिगरे जहा महावीरो, नवुस्सेहे सोलसेहि समणसाहस्सोहिं, अद्रुतीसा जाव कोट्ठए समीसढे, परिसा निग्गया ! । ___तए णं से अंगइ गाहावई इमोसे कहाए लद्धठे समाणे हठे जहा कत्तिओ सेट्ठी तहा निग्गच्छइ जाव पज्जवासइ, धम्म सोच्चा निसम्म० जं नवरं देवाणुप्पिया ! जेट्टपुत्ते कुटुंबे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं जाव पव्वयामि, जहा गंगदत्तो तहा पव्वइए जाव गुत्तबंभयारी।
तए णं से अंगई अणगारे पासस्स अरहो तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइय-माइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि च उत्थ जाव भावेमाणे बहूई वासाइं सामन्नपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्ध मासियाए संलेहणए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदित्ता विराहिय