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________________ वर्ग-द्वितीय ( १७६ ) [कल्पावतंसिका खलु जंबू !-इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू !, तेणं कालेणं तेणं समयेणं-उस काल उस समय, चंपा नाम नगरी होत्था-चम्पा नाम की नगरी थी, पन्नभद्दे चेइए-वहां पूर्ण भद्र नामक चैत्य था, कणिए राया, पउमावईदेवी- कोणिक राजा था, पद्मावती रानी थी, तत्थ णं चंपाए नयरीए-उस चम्पा नगरी में, सेणियस्स रन्नो भज्जा-श्रेणिक राजा की भार्या. कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया-कोणिक राजा की छोटी माता; सुकाली नाम देवी होत्था-सुकाली नाम की महारानी थी, तोसे गं सुकालीए पुत्ते-उस सुकाली के पुत्र, सुकाल नाम कुमारे- सुकाल नाम का कुमार था, तस्स णं सुकालस्स कुमारस्स-उस सुकमार सुकाल कुमार के, महापउमा नाम देवी होत्था-महापद्मा नाम की देवी थी, सुकुमाला०-जो सुकोमल थी। तए णं सा महापाउमा देवी-तत्पश्चात् वह महापद्मा देवी, अन्नया कयाई-अन्य किसी समय, तंसि तारिसगंसि-उसके समान शैय्या पर, एवं तहेथ महाप उमे नाम दारए-वैसे ही महापद्म नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जाव-यावत्, सिज्झिहिइ-मोक्ष पद प्राप्त करेगा, नवरं ईसाणे कप्पे उववाओ-इतना विशेष है कि उसका ईशान देव-लोक में उत्पति (जन्म) होगा, उक्कोसट्ठि इओ-उत्कृष्ट स्थिति जाननी चाहिए, तं एवं खल जंब-इस प्रकार हे जम्बू !, समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं-श्रमण भगवान यावत् मोक्ष को संप्राप्त ने द्वितीय अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है, एवं सेसा वि अट्ठ नेयव्वा- इस प्रकार शेष आठ अध्ययनों के विषय में भी जान लेना चाहिए, मायाओ सरिसनामाओ-सबके नाम माताओं के नामों पर हैं. कालादीणं पत्ता आणपवीए-अनुक्रम से कालादि दसों कुमारों की चारित्र पर्याय इस प्रकार है, दोण्हं च पंच-प्रथम दो की पांच वर्ष, चत्तारि तिह-फिर तीन की चार वर्ष, तिण्हं च होंति तिण्णेव-फिर तीन कुमारों की तीन वर्ष, दोण्हं च दोणि वासा-फिर दो की दो वर्ष, सेणियनत्तण परियाीश्रेणिक राजा के पौत्र का चारित्र पर्याय है। ___ उववानो आणुपुत्रीए -उपपात अनुक्रम से, पढमो सोहम्मे-प्रथम सौधर्म में, वितिमो ईसाणे-द्वितीय का ईशान कल्प में, तइओ सणंकमारे - तीसरा सनत कुमार देवलोक में, चउत्थो माहिदे-चतुर्थ माहेन्द्र कल्प देवलोक में, पंचमओ वंभलोए-पांचवां ब्रह्म देवलोक में, छट्ठो लंतए-छठा लांतक कल्प में, सत्तमओ महासुक्के-सातवें का महाशुक्र में, अट्ठम भो सहस्सारेआठवां सहस्रार देवलोक में, नवमओ पाणए-नौवां प्राणत देवलोक में, दसमओ अच्चुए-दशवां अच्युत देवलोक में उत्पन्न हुआ, सव्वस्स उक्कोसहि -सब की उत्कृष्ट स्थिति कहनी चाहिए, महाविदेह सिज्झिहिइ भाणियव्वा-पोर यावत् सन्न हो महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध गति प्राप्त करेंगे, अर्थात् मोक्ष प्राप्त करके सब दु:खों का अंत करेंगे। कप्पडिसियाओ वितियोवग्गो संमताओ-कल्पावतंसिका नामक शास्त्र द्वितीय वर्ग समाप्त हुमा ।।७।। मूलार्थ-अब आर्य जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-हे भगवन् ! श्रमण भगवान यावत् मोक्ष को संप्राप्त ने अगर कल्पावतंसिका के द्वितीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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