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________________ ( १७३) ( वग - द्वितीय निरयावलका ] मास की संलेखना से साठ भक्तों के अनुक्रम से काल-धर्म को प्राप्त हुआ । स्थविर पर्वत से नीचे उतर आए, उसके भण्ड उपकरण भगवान महावीर को दिखाये । गणधर गौतम ने प्रश्न किया - हे भगवन् ! पद्म अनगार काल करके कहां उत्पन्न हुआ है ? भगवान महावीर ने उत्तर दिया " हे गौतम ! पद्म अनगार अपनी संयम क्रिया का पूर्णत: पालन कर आलोचना प्रतिक्रमण करके शल्यों से शुद्ध होकर एक मास की संलेखना से प्रथम देवलोक में दो सागरोपम की स्थिति वाले देव के रूप में उत्पन्न हुआ है ||५|| . टीका - प्रस्तुत सूत्र में बतलाया गया है कि पद्म अनगार ने तथारूप श्रुतज्ञ स्थविरों के समीप आचाराङ्ग आदि ग्यारह अङ्गों का अध्ययन किया। पांच वर्षों तक साधु-जीवन का पालन किया । एक मास की संलेखना की । साठ (६०) भक्तों का छेदन कर अनुक्रम से काल-धर्म को प्राप्त हुआ। तब स्थविर विपुल गिरि से उतर कर नीचे भगवान के समीप उपस्थित हुए । उन्होंने पद्म अनगार के भण्डोपकरण दिखाकर उसके समाधि मरण की सूचना दी। गणधर गौतम ने जब पद्म अनगार का भविष्य पूछा, तो श्रमण भगवान ने बताया कि पद्म अनगार यहां से काल करके सौधर्म देवलोक में दो सागरोपम की आयु वाला देव बना है । जिस प्रकार मेघ कुमार का वर्णन श्री ज्ञाताधर्म कथाङ्ग सूत्र में आया है पद्म मुनि का साधनामय जीवन भी वैसा ही जान लेना चाहिए ||५|| मूल-से णं भंते पउमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं पुच्छा, गोमा ! महाविदेहे वासे जहा दढपइन्नो जाव अंतं काहि । तं एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते तिबेमि ॥ ६ ॥ छाया - सः खलु भवन्त ! पद्मो देवस्ततो देवलोकाद् आयु:-क्षयेण पृच्छति, गौतम ! महाविदेहे वर्षे यथा दृढप्रतिज्ञो यावदन्तं करिष्यति । तदेव खलु जम्बू ! श्रमणेन यावत् संप्राप्न कल्पाafeकानां प्रथमस्याध्ययनस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः इति ब्रवीमि ॥ ६ ॥ ताओ देव लोगाओ - उस पउमे देवे- पद्मदेव, उत्पन्न होगा ?, पदार्थावयः - से णं भंते - हे भगवन ! वह, देवलोक से, आउक्खएणं - आयु क्षय करके, कहां गौतम ने प्रश्न किया, भगवान के उत्तर दिया, गोयमा - हे गौतम, क्षेत्र में, जहा - जैसे, दंडप इन्नो जाब- दृढ़ प्रतिज्ञ कुमार का वर्णन है यावत् सब दुःखों का अंत पुच्छा - इस प्रकार गणधर महाविदेह वासे - महाविदेह 8
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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