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________________ बर्ग - द्वितीय ] ( १७२ ) [ निरयावलिका यह है कि धर्म जागरणा करने के अतिरिक्त कुछ अन्य जागरण भी हैं जैसे कि कुटुम्ब - जागरिया, अत्थजागरिया, काम- जागरिया, कलह-जागरिया, विवाद- जागरिया, सक्लेश- जागरिया, मोह जागरिया आदि अनेक जागरण हैं। इनको छोड़कर धर्म जागरण ही प्रात्मा के लिये कल्याणकारी है। इसका कारण यह है कि रात्रि में निद्रा से मुक्त होने पर विचार अवश्य आते हैं । अठारह पापों के अशुभ विचार होते हैं, उन पापों से बचने के लिए शुभ विचार किये जाते हैं । जिन्हें शास्त्रकार ने धर्म जागरणा नाम दिया है। धर्म जागरण, नित्य जागरण, बुद्ध जागरण प्रबुद्ध जागरण, सुदर्शन जागरण आदि शुभ जागरण हैं || ४ || मूल - तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई, बहुपडिपुणाई पंच वासाई सामन्नपरियाए, मासियाए संलेहणाए सट्ठ भत्ताइं० आणुपुव्वी कालगए। थेरा ओइन्ना, भगवं गोयमो पुच्छर, सामी कहेइ जाव सठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता आलोइय० उड्टं चंदिम० सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने, दो सागराई ॥५॥ छाया - तथारूपाणां स्थविराणाम् अन्तिके सामायिकाविकानि एकादशाङ्गानि बहुप्रतिपूर्णानि पञ्च वर्षाणि श्रामण्यपर्यायः। मासिक्या संलेखनया षष्ठि भक्तानि आनुपूर्व्या कालगत । । स्थविरा अवतीर्णाः, भगवान् गौतमः पृच्छति - स्वामी कथयति यावत् षष्ठि भक्तानि अनशनेन छत्वा आलोचति० ऊध्वं चन्द्रमः० सौधर्म कल्पे देवत्वेन उपपन्नः, द्वौ सागरी ॥५॥ पदार्थान्वयः -- तहारुवाणं - तथारूप श्रमण, थेराणं - स्थविरों के, अंतिए - समीप, सामाइयमाइया - सामायिक आदि, एक्कारस अंगाई - एकादश अंगों को पढ़कर, बहुपडिपुण्णा - बहुत प्रतिपूर्ण, पञ्चवासाई - पांच वर्ष, सामण्णपरियाए - श्रामण्य पर्याय पालकर, मासियाए संलेहणाए - एक भास का अनशन करके, सहि भत्ताईसाठं भक्त का छेदन कर, आणुपुब्बीएअनुक्रम से उसने कालगए - काल किया, थेरा - स्थविर, ओबिना - विपुलगिरि पर्वत से उतर आये, भगवं भगवान, गौतमं - गौतम ने, पुच्छ६ - पूछा, सामी कहेइ - भगवान महावीर ने उत्तर दिया, जाव - यावत्, सट्टि भत्ताइं - साठ भक्त, अणसणाए अनशनों का, छेवित्ताछेदन कर, आलोय - श्रालोचना प्रतिक्रमण कर, उड्ड-ऊंचे, चंदिम० - चन्द्र से, सोहम्मे कप्पेसौधर्म कल्प में, देवत्ताएं - देव रूप में, उबबन्ने - उत्पन्न हुआ, वो सागराई - जिसकी स्थिति दो सागरोपम की है ॥५॥ मूलार्थ - पद्म अनगार तथारूप स्थविरों के समीप सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अङ्ग शास्त्र पढ़कर बहुत प्रतिपूर्ण पांच वर्ष संयम पर्याय पाला। फिर एक -
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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