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________________ निरयावलिका (१७१) [वर्ग - द्वितीय . पदार्थान्वय:-तएणं से पउमे अणगारे-तत्पश्चात् वह पद्म अनगार, समणस्स भगवओ महावीरस्स-श्रमण भगवान महावीर के, तहा रूवाणं-तथा रूप विद्वान, थेराणं-स्थविरों के, अंतिए-समीप, साइयमाइयाई-सामायिक आदि से लेकर, एकारस्स अंङ्गाई-ग्यारह अङ्गों का, अहिज्जइ - अध्ययन करता है, अहिजित्ता-अध्ययन करके, वहि-बहुत से, चउत्थछट्ठठम-एक उपवास, दो उपवास, तीन उपवास आदि ग्रहण कर, जाव - यावत् विहर इविचरता है, तएणं-तत्पश्चात, पउमे अणगारे-वह पद्म अनगार, तेणं-उस, उरालेणंप्रधान तप द्वारा शरीर से, जहा-जैसे, मेहो-मेघ कुमार, तहेव-उसी प्रकार, धम्मजागरियाधर्म जागरण, चिता-चिन्तन, एवं - इसी प्रकार, नहेव-जैसे, मेहो-मेघ कुमार, तहेव-उसी प्रकार, समणं भगवं-श्रमण भगवान से, आपुच्छिता-पूछ कर, विउले-विपुलगिरि पर चढ़ कर. जाव-यावत्, पाओवगए समाणे-पादोपगमन अनशन कर साधना करने लगा।।४।। मूलार्थ-तत्पश्चात् वह पद्म अनगार श्रमण भगवान महावीर के तथा रूप श्रमणों के समीप रह कर सामायिक आदि से लेकर एकादश अङ्गों को पढ़ता है, पढ़ कर बहुत बार एक-एक उपवास, दो-दो उपवास, तीन-तीन उपवास आदि से महातप धारण कर विचरता है । तब पद्म अनगार का वह प्रधान तप के करने से शरीर कृश हो गया। जिस प्रकार मेघ कुमार ने धर्म जागरण करते हुए अनशन करने की विचारणा की थी, ठीक उसी प्रकार का विचार कर, पद्म अनगार भगवान महावीर से आज्ञा लेकर विपुलगिरि (राजगृह) पर्वत पर चढ़ कर पादोपगमन अनशन कर साधना करने लगा ॥४॥ टोका-प्रस्तुत सूत्र में राजकुमार पद्म की स्थविरों के पास एकादश अङ्ग पढ़ने की चर्चा . है। सामायिक आचारङ्ग सूत्र का ही नाम है। फिर लम्बे समय तक तप करते हुए. धर्म-जागरण करता है। लम्बे समय तक तप करने से जब शरीर कृश हो गया तब वह पद्म अनगार मेघ कुमार की तरह विपुल गिरि पर समाधि - मरण के लिए जाता है। वह पादोपगमन अनशन की आज्ञा भगवान कहावीर से लेता है। मेघ.मुनि भी राजा श्रेणिक का पुत्र था। उसका वर्णन श्री ज्ञाताधर्म कपाङ्ग सूत्र में देखना चाहिए। हस्तलिखित कतिपय प्रतियों में समाणे' पद के स्थान पर समर्ण पद दिया गया है, किन्तु प्रकरण अनुसार 'समाणे' पद ही उपयुक्त है। तथा "धम्म जागरिया चिता" इन दो पदों से यह सूचित किया गया है कि यदि रात्रि में निद्रा खुल जाए, तब धर्म के विषय में चिन्तन करना चाहिए। इसका नाम ही धर्म-जागरणा है । फिर विचार पूर्वक सच्चे धर्म का पालन करना चाहिये । कारण
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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