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निरयावलिका]
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[वर्ग-द्वितीय
की रानी थी, जो सुकोमल थी एवं शान्ति-पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी। ___ तत्पश्चात् वह पद्मावती देवी किसी समय पुण्यवान प्राणी के योग्य वासगृह में शैय्या पर शयन कर रही थो। वह वासगृह अन्दर से चित्रों से सुसज्जित था यावत् (वह) सिंह के स्वप्न को देखकर जाग उठी। (बालक उत्पन्न हुआ) जिसका जन्म, नामकरण आदि जिस प्रकार महाबल कुमार का हुआ था उसी प्रकार इसका भी जानना चाहिए । यह काल कुमार का पुत्र व पद्मावती का आत्मज है, अत: इस बालक का नाम पदम रखा गया। शेष वर्णन महाबल कुमार की तरह जानना चाहिए, आठ कन्याओं से उसका विवाह हुआ, आठों कन्याओं के परिवारों का दान-दहेज आया, यावत् राज-प्रासाद में बैठ कर सुख भोगता हुआ, विचरता है। शेष वर्णन महावल कुमार की तरह ही जानना चाहिये । २।।
टोका-प्रस्तुत सूत्र में आर्य सुधर्मा के शिष्य अंतिम केवली जम्बू स्वामी ने दश अध्ययनों में : से प्रथम अध्ययन का अर्थ पूछा है । शिष्य की जिज्ञासा को शांत करते हुए गुरुदेव कहते हैं कि प्रथम अध्ययन में काल कुमार का वर्णन है। इसका समस्त वर्णन महाबल कुमार की तरह जानना चाहिये । जैसे पंचम मङ्ग भगवती सूत्र के ग्यारहवें शतक में महाबल कुमार का वर्णन है वैसा ही समझें अन्तर इतना है कि यहां काल कुमार के पिता श्रेणिक हैं पर कोणिक व काल कुमार की रानियों के नाम एक तरह के हैं। काल कुमार की रानी सिंह का स्वप्न देख कर जागृत होती है । प्राचीन परम्परा है कि शुभ स्वप्न आने पर जागृत रहना अच्छा होता है। यहां राज कुमार पद्म के जन्म का वर्णन आया है। जो अपने माता-पिता की तरह सुकोमल एवं सुन्दर है, बड़ा होने पर आठों ही कुमारों की शादी होती है। आठों सुन्दर कन्याएं काफी दहेज लाई । परन्तु प्राचीन काल में दहेज आज की तरह जरूरी नहीं होता था माता-पिता सभी वस्तुएं पुत्री को स्वेइच्छा से भेंट करते थे। जीवन भर स्त्री हो इसको स्वामिनी होती थी। इसे स्त्री-धन कहा जाता था। महाबल कुमार की तरह इसने भी प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी द्वारा प्रतिपादित ७२ कलाएं 'कलाचार्य से सीखीं। अब ये आठ पत्नियों के साथ सुख से रह रहा है।
'सोमाला' पद का कई अर्थों में प्रयोग हुआ है, शरीर का. सुकोमल, शान्तिपूर्वक जीवन, या सुखमय जीवन गुजारने वाला के रूप में ।।२।।
मूल-सामी समोसरिए परिसा निग्गया, कूणिओ निग्गए, पउमेवि जहा महब्बले निग्गए तहेव अम्मापिइ-आपुच्छणा जाव पव्वइए अणगारे जाए जाव गुत्तबंभयारी ॥३॥