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________________ बर्ग - द्वितीय ] ( १६६ ) [ निरयावलिका एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन भगवता यावत् संप्राप्तेन कल्पावतंसिकानां दश अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - १. पद्मः २. महापद्मः ३. भद्रः ४. सुभद्रः, ५. पद्मभद्र, ६. पद्मसेनः ७. पद्मगुल्मः, ८. नलिनीगुल्मा ६. आनन्दः, १०. नन्दनः । पदार्थान्वयः—जइ णं भंते - हे भगवन् यदि, समणेणं भगवया -- श्रमण भगवान महावीर ने, जाव संपत्ते - यावत् मोक्ष को संप्राप्त, उवङ्गाणं- उपांगों में प्रथम, निरयावलियाणं अथमट्ट पत्ते -- निरयावलिका का यह अर्थ प्रतिपादन किया है, दोच्चस्स णं भंते वग्गस्स कव्यर्वाड सियाणंहे भगवन् ! तो द्वितीय वर्ग कल्पावतंसिका का समणे णं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पत्तामोक्ष को संप्राप्त श्रमण भगवान (महावीर ) ने कितने अध्ययन बतलाये हैं | एवं खलु जम्बू - इस प्रकार हे जम्बू, समणेण भगवया - श्रमण भगवान, जाव संपतेणंयावत् मोक्ष को संप्राप्त ने, कंप्पबडसियाणं दस अज्झायणा पत्ता- कल्पावतिसका नामक वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादित किए हैं, तं जहा-जैसे, पउमे - पद्म, महापउमे - महापद्म, भद्दे - भद्र, सुभद्दे – सुभद्र, पउमभद्दे - पद्मभद्र, पउमसेणे - पद्मसेन, पउमगुल्म- पद्मगुल्म, नलिणिगुम्मेनलिनोगुल्म, आणन्दे - आनंद, (मौर) नन्दणे - नंदन | मूलार्थं - हे भगवन् ! यदि मोक्ष को संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने उपाङ्गों प्रथम निरावलिका का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! दूसरे वर्ग कल्पावतंसिका के यावत् मोक्ष को संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने कितने अध्ययन प्रतिपादित किये हैं ? हे जम्बू ! मोक्ष को संप्राप्त श्रमण भगवान ने काल्पावतंसिका नामक दूसरे वर्ग के दस अध्ययन प्रतिपादन किये हैं. जिनके नाम इस प्रकार हैं । १. पद्म, २. महापद्म, ३. भद्र, ४. सुभद्र, ५. पद्मभद्र, ६. पद्मसेन, ७. ८. नलिनी गुल्म, ९ आनन्द, और १०. नन्दन । पद्मगुल्म, टीका - प्रस्तुत सूत्र में दूसरे वर्ग कल्पावतंसिका के विषय में वर्णन किया गया है। इस वर्ग के दस अध्ययन हैं | आयं जम्बू के प्रश्न के उत्तर में आई गणधर सुधर्मा ने बताया कि इन दश अध्ययनों में आये नाम कल्प देवलोक में उत्पन्न चारित्र-निष्ठ आत्मानों का वर्णन है। यहां "समणेणं भगवया जाव संपत्तेर्ण" पद से सम्पूर्ण "नमोत्थूणं" का पाठ ग्रहण करना चाहिये || १ || उत्थानिका— अब जम्बूस्वामी प्रथम अध्ययन के विषय में श्री सुधर्मा स्वामी जी से प्रश्न करते हैंमूल - जइणं भंते! समणेणं जाव सपत्तेणं कप्पवडसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स कप्पवडिसियाणं
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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