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________________ अथ कल्पावतंसिका नाम द्वितीयो वर्गः उत्थानिका प्रथम वर्ग निरयावलिका का अर्थ सुनने के पश्चात् आर्य जम्बू, अपने गुरुदेव पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी से पुनः जिज्ञासा करते हुए, द्वितीय वर्ग कल्पावतंसिका का अर्थ सविनय पूछते हुए कहते हैं-"हे भगवन् ! मैंने आपके द्वारा वर्णित प्रथम उपाङ्ग निरयावलिका का अर्थ सम्यक् रूप से ग्रहण कर लिया है, अब कृपया मुझे द्वितीय वर्ग कल्पावतंसिका का अर्थ बतलाने का अनुग्रह करें, जो आपने श्रमण भगवान महावीर से श्रवण किया था। शिष्य की जिज्ञासा का समाधान आर्य सुधर्मा स्वामी जिस प्रकार करते हैं उसी का कथन इस अध्ययन में किया गया है । इस अध्ययन से यह बात सिद्ध होता है कि जब यह उपाङ्ग आर्य सुधर्मा जी ने सुनाया था उस समय श्रमण भगवान महावीर मोक्ष में पधार चुके थे। मूल-जइणं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं अयमठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स कप्पडिसियाणं समणेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता?। एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं कप्पडिसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तंजहा-१. पउमे, २. महापउमे, ३. भद्दे, ४. सुभद्दे, ५. पउमभद्दे, ६. पउमसेणे, ७. पउमगुम्मे, ८. नलिणिगुम्मे, ६. आणंदे, १०. नंदणे ॥१॥ छाया-यवि खलु भदन्त ! श्रमणेन भगवता यावत् संप्राप्तेन उपाङ्गानां प्रथमस्य वर्गस्य निरयावलिकानामयमा प्रज्ञप्तः, द्वितीयस्य खलु भवन्त । वर्गस्य कल्पावतंसिकानां श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन कति अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि ? निरयावलिका] (१६५) [वर्ग-द्वितीय
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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