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निरयावलिका
(१६१)
[वर्ग-प्रथम
उसकी पद्मावती नाम की रानी थी । उस चम्पा नगरी में राजा श्रेणिक की भार्या एवं राजा कूणिक की छोटी माता सुकाली देवी थी, जो कि सुकोमल थी। उस सुकाली देवी का पुत्र सुकाल कुमार किसी समय तीन हजार हाथियों (व सेना) के सहित मारा गया। जैसे काल कुमार का भी अन्त हुआ और सुकाल कुमार भी नरक की आयु सम्पूर्ण करके महाविदेह क्षेत्र में पैदा होगा, यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा।
इसी प्रकार शेष आठ अध्ययनों का विषय भी जानना चाहिये । इतना विशेष है कि इन सब राज कुमारों के नाम उनकी माताओं के नामों के अनुसार हैं ॥१५॥
टीका-प्रस्तुत सूत्र में शास्त्रकार ने शेष नौ अध्ययनों का संक्षिप्त वर्णन किया है। साथ में सूचित किया है कि सभी राजकुमार रथ-मुशल संग्राम में काल कुमार की तरह लड़ते हुए मारे गए और नरक गति को प्राप्त हुए ।
सभी राजकुमार मर कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे। वहां से वे सब दुखों से मुक्त होकर सिद्ध-बुद्ध पद प्राप्त करेंगे। सभी राजकुमारों का वर्णन समान है, अन्तर केवल माताजों के नामों का है। सभी का पिता राजा श्रेणिक है, सभी कोणिक के भ्राता हैं । प्राचीन काल में पिता की दूसरी पत्नी के लिये सम्मान-जनक छोटी माता पद आया है अतः उसे भी कोणिक की छोटी माता कहा गया है । अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि रथ-मुशल संग्राम किसे कहते हैं। इसका वर्णन भगवती सूत्र के सातवें शतक में प्राप्त होता है।
लड़ाई में राजा चेटक ने बहादुरी से दशों भाइयों को एक-एक बाण से मार दिया। यह • भयंकर स्थिति देख कर राजा कोणिक भयभीत हुआ कि कहीं अपने भाइयों की तरह मैं भी राजा
चेटक के हाथों न मारा जाऊं । राजा कोणिक ने अपने पूर्व भव के दो मित्रों को याद किया जो अब शक्रेन्द्र व चमरेन्द्र के रूप में देव-लोक में पैदा हुए थे। उन दोनों देवों की प्राराधना से दोनों देव प्रसन्न हुए वह कोणिक के समीप आए। उन्होंने रथमुशल तथा महाशिला कंटक संग्राम में भाग लिया। जब शक्रन्द्र ने महाशिला कंटक संग्राम में वैक्रिय किया, तब कोणिक राजा शस्त्रों से सुसज्जित होकर उदाई नामक हस्ति-रस्न पर आरूढ़ हुआ। उस समय शक्रन्द्र अभेद्य वज्र मय कवच वैक्रिय कर, राजा कोणिक के सन्मुख खड़ा रहा । एक हाथी पर सुरेन्द्र और नरेन्द्र दोनों इन्द्र मिलकर संग्राम करने लगे। उस संग्राम में शक्रन्द्र ने तणकाय पत्थर कंकर वैक्रिय किया वह महाशिला रूप बन गये। इस तरह इस संग्राम में चौरासी (८४) लाख मनुष्यों की मृत्यु हुई।
प्रायः सब सैनिक मर कर नरक में उत्पन्न हुए। इस तरह चमरेन्द्र ने तापस के बर्तनों की तरह वैक्रिय करके राजा कोणिक की सहायता की। शकेन्द्र, असुरेन्द्र तीनों इन्द्रों ने इस युद्ध में