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वर्ग-प्रथम]
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[निरयावलिका
भाग लिया। सारथी के बिना ही खाली रथ चारों तरफ मुसलों को लगाकर छोड़ा गया इससे ६६ लाख मनुष्यों का पात हुआ। उसमें से दस हजार मछली के पेट में उत्पन्न हुए, एक मनुष्य गति में पैदा हुआ और एक देव गति में आया ।
वैशाली नगरी में वरुण नामक नाग सारथी का पोता बहुत ऋद्धिवन्त जीवाजीव का ज्ञाता था। क्षमणोपासक था, निरन्तर छठ-छठ व्रत का पारना करते हुए, आत्मा को सयमासंयम से भावित कर रहा था। वह राजा की आज्ञा से षट् व अष्टम तप कर रथ-मुशल संग्राम में आया। उसका नियम था कि वह निरपराधी जीव को नहीं मारेगा। जब दूसरी ओर से बाण मारा गया तब वह संग्राम स्थान में ही देव-गुरु व धर्म की साक्षी से समाधि-मरण को प्राप्त करके सौधर्म देव लोक में उत्पन्न हुआ।
इस देव का अन्य देवों ने स्वर्ग में आगमन महोत्सव मनाया, जिससे देव आपस में कहने लगे जो संग्राम में मरता है वह स्वर्ग में जाता है । उस समय उस वरुण के पौत्र का बाल मित्र भी संग्राम में आया हुआ था। उसको भी बाण लगा ? वह भी अपने मित्र के पास आकर वैसे ही आसन पर बैठ कर हाथ जोड़कर बोला जो मेरे मित्र ने किया, वह ही मैं करूं, यह सोचकर उसने मन से पापकारी शल्यों का त्याग किया। बायुष्य पूर्ण कर मनुष्य के रूप में पैदा हुआ। वहां से धर्म आराधना द्वारा महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध मुक्त होगा। .
इस युद्ध में व्यापक स्तर पर जान-माल की भारी क्षति हुई। राजा चेटक आदि अठारह (१८) गणराजाओं की हार हुई। राजा कोणिक जीत गया। इस प्रकार कोषिक द्वारा वैशाली का विनाश हुमा।
-निरयावलिका प्रथम वर्ग पूर्ण