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________________ निरयावलिका (१५७ ) [वर्ग-प्रथम • ग्रहमाला से चार योजन की ऊंचाई पर हरितरत्नमय बुध तारा है। इससे तीन योजन ऊपर स्फटिकरत्नमय शुक्र तारा है। इससे तीन योजन उपर पोतरत्नमय बृहस्पति तारा है। इससे तीन योजन ऊपर रक्तरत्नमय मंगल तारा है । इससे तीन योजन ऊपर जम्बूनदमय शनि तारा है। इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिश्चक्र मध्यलोक में ही है और समतल भूमि से ७६० योजन की ऊंचाई से आरम्भ होकर ६०० योजन तक अर्थात् ११० योजन में स्थित है। ज्योतिष्क देवों के विमान जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से ११२१ योजन दूर चारों ओर घूमते रहते हैं। अधोलोक परिचय-मध्यलोक से नीचे का प्रदेश अधेलोक कहलाता है। इसमें सात नरक भूमियां हैं जो रत्नप्रभा आदि सात नामों से विश्रुत हैं। इनमें नारक जीव (पापी जीव) रहते हैं। इन सातों भूमियों को लम्बाई-चौड़ाई एक-सी नहीं है। नीचे-नीचे की भूमियां ऊपर-ऊपर की भमियों से उत्तरोत्तर अधिक लम्बी-चौडी हैं। ये भूमियां एक दूसरी के नीचे हैं, किन्तु परस्पर सटी हुई नहीं हैं। बीच-बीच में अन्तराल (खाली जगह) है । इस अन्तराल में घनीदषि, घनवात और आकाश है। अधोलोक की सात भमियों के नाम इस प्रकार हैं-रत्नप्रभा. शर्कराप्रभा, बालकाप्रभा. पंकप्रभा, धूमप्रभा, तम:प्रभा और तमस्तमःप्रभा। इनके नामों के साथ जो प्रभा शब्द जड़ा हुआ है, वह इनके रंग को अभिव्यक्त करता है। सात नरक भूमियों की मोटाई इस प्रकार है रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन काण्ड हैं—पहला रत्नबहुल खरकाण्ड है, जिसकी ऊपर से नीचे तक की मोटाई १६००० योजन है । उसके नीचे दूसरा काण्ड पंकबहुल है, जिसकी मोटाई ८०००० योजन है और उसके नीचे तृतीय काण्ड जलबहुल है, जिसको मोटाई ८४००० योजन है । इस प्रकार तीनों काण्डों की कुल मिलाकर मोटाई १,८०००० योजन है। - इसमें ऊपर और नीचे एक-एक हजार योजन छोड़कर बीच में १७२००० योजन का अन्तराल है, जिसमें १३ पाथड़े और १२ आन्तरे हैं । बीच के १० आन्तरों में असुरकुमार आदि दस प्रकार के भवनपतिदेव रहते हैं। प्रत्येक पाथड़े के मध्य में एक हजार योजन की पोलार है जिसमें तीस लाख नरकावास हैं। दूसरी नरक-पृथ्वी की मोटाई १,३२००० योजन है। तीसरी नरक पृथ्वी की मोटाई १,२८००० योजन है । चतुर्थ नरकभूमि की मोटाई १,२०००० योजन है, पांचवीं नरक-भूमि की मोटाई १,१८००० योजन है, छठी नरकभूमि की मोटाई १,१६००० योजन है और सातवीं नरकपृथ्वी की मोटाई १,०८००० योजन है। सातों नरकों के नीचे जो घनोदधि है उसकी मोटाई भी विभिन्न प्रमाणों में है। ___रत्नप्रभा प्रादि नरक-भूमियों की जितनी-जितनी मोटाई बताई गई है, उस-उस के ऊपर और नीचे के एक-एक हजार योजन भाग को छोड़कर शेष भाग में नरकावास हैं।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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