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निरयावलिका]
(१५५)
[वर्ग-प्रथम
किनारों की ओर पतली होती हुई अन्त में मक्खो के पंख से भी अधिक पतलो हो गई है। इसका आकार खुले हुए छत्र के समान है। शं व, अंकरल और कुन्दपुष्प के समान स्वभावत. श्वेत, निर्मल, कल्याणकर एवं स्वर्णमयी होने से इसे 'सीता' भी कहते हैं। 'ईषत् प्राग्भारा' नाम से भी यह प्रसिद्ध है। इससे एक योजन प्रमाण ऊपर वाले क्षेत्र को 'लोकान्तभाग' भी कहते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में इस लोकान्त को 'लोकार' भी कहा गया है, क्योंकि वह लोक का अन्त या सिरा है. इसके पश्चात् लोक की सीमा समाप्त हो जाती है। इस एक योजन प्रमाण लोकान्त भाग के ऊपरी कोस के छठे भाग में मुक्त (सिद्ध) आत्माओं का निवास है।।
मध्यलोक का परिचय-मध्यलोक को तिर्यक्लोक या मनुष्यलोक भी कहा गया है। यह १८०० योजन प्रमाण है। इस लोक के मध्य में जम्बूद्वीप है और उसे घेरे हुए असंख्यात द्वीपसमुद्र हैं। ये सभी परस्पर एक दूसरे को वलय (चूड़ी) के आकार में धेरे हुए हैं। इनमें प्रायः पशुओं
और वान-व्यन्तर देवों के स्थान हैं । इतने विशाल क्षेत्र में केवल अढ़ाई द्वीपों में ही मनुष्य जाति का निवास है। मनुष्य के साथ-साथ तिर्यञ्चों (ऐसे जीव जिनकी पीठ सदैव आकाश की तरफ रहती है) का भी इसमें निवास पाया जाता है । अढाई द्वीप को 'समय-क्षेत्र' भी कहते हैं। अढाई द्वीपों की रचना एक सरीखी है। अन्तर केवल इतना हो है कि इनका क्षेत्र क्रमशः दुगुना-दुगुना होता चला गया है। पुष्करद्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत आ जाने से मनुष्यक्षेत्र में आधा पुष्करदीप ही गिना गया है।
__ जम्बूद्वीप में सात मुख्य क्षेत्र हैं-भरत, हैमवत, हरि, विदेह. रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत । विदेह क्षेत्र के दो अन्य प्रमुख भाग हैं - देवकुरु और उत्तरकुरु । धातकीखण्ड और पुष्करार्धद्वीप में इन सभी क्षेत्रों की दुगुनी-दुगुनी संख्या है। ये सभी क्षेत्र तीन भागों में विभक्त हैं - कर्मभूमि, अकर्मभूमि और अन्तरद्वीप।
कर्मभूमिक क्षेत्र वे हैं, जहां के निवासी मानव कृषि, वाणिज्य, शिल्पकला आदि कर्मों (पुरुषार्थ) के द्वारा जीवन-यापन करते हैं । कर्मभूमिक क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट पुण्यात्मा और निम्नलिखित पापात्मा दोनों प्रकार के मनुष्य पाए जाते हैं ।
कर्मभूमिक क्षेत्र १५ हैं -५ भरत हैं जिनमें से जम्बूद्वीप में एक, घातकीखण्ड में दो और पुष्करार्द्ध-द्वीप में दो हैं। इसी तरह ५ ऐरावत हैं-जम्बूद्वीप में एक, धातकीखण्ड में दो, पुष्करार्द्धद्वीप में दो। महाविदेह भी पांच हैं--एक जम्बुद्वीप में, दो घातकीखण्ड में और दो पुष्करार्द्धद्वीप में हैं । यों अढाई द्वीपों में कर्मभूमि के सब क्षेत्र पन्द्रह हैं।
अकर्मभूमिक क्षेत्र वे हैं, जहां कृषि आदि कर्म किये बिना अनायास ही भोगोपभोग की सामग्री मिल जाती है । जीवन-निर्वाह के लिये कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता। यहां भोगों-भोग्य. सामग्री की प्रचुरता होने से यह भोगभूमि भी कहलाती है। जम्बूद्वीप में एक हैमवत, एक हरिवर्ष एक रम्यकवर्ष, एक हैरण्यवत, एक देवकुरु और एक उत्तरकुरु, यों छह भोगभूमिक क्षेत्र हैं । घातकीखण्ड और पुष्करार्द्धद्वीप में इनके प्रत्येक के दो-दो क्षेत्र होने से दोनों द्वीपों में बारह-बारह क्षेत्र हैं।