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निरयावलिका]
(१५३ )
[वर्ग-प्रथम
• प्रस्तुत अध्ययन के उपसंहार के रूप में जम्बू स्वामी से उनके पूज्य गुरुदेव श्री सुधर्मा कहते हैं-"जम्बू ! जैसे मैंने निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का अर्थ अपने पूज्य शास्ता श्रमण भगवान महावीर से सुना था वैसा ही तुम्हें बताया है । हम पाठकों को जानकारी के लिये शास्त्रों में वणित लोक का स्वरूप संक्षेप में कथन करते हैं, ताकि स्वर्ग-नरक व महाविदेह क्षेत्र का विषय स्पष्ट हो जाए।
जैन धर्म के अनुसार लोक
लोक-अलोक की सीमा-लोक और अलोक की सीमा निर्धारण करने वाले स्थिर शाश्वत और व्यापक दो तत्त्व हैं - धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय जो इस अखण्ड आकाश को दो भागों में विभाजित करते हैं। ये दोनों जहां तक हैं वहां तक लोक है और जहां इन दोनों का अभाव है, वहां अलोक है। धर्मास्तिककाय और अधम स्तिकाय के अभाव में जीवों और पुद्गलों को गति और स्थिति में सहायता नहीं मिलती। इसलिए जीव और पुद्गल लोक में ही हैं, अलोक में नहीं ।
महान् वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन ने भी क्षेत्र-लोक की सीमा इसी से मिलती-जुलती मानी है-“लोक के परिमित होने का कारण यह है कि द्रव्य अथवा शक्ति लोक के बाहर जा नहीं सकती। लोक के बाहर उस शक्ति (धर्मास्ति काय) का अभाव है जो गति में सहायक होती है।"
__ लोक का संस्थान (आकार)- लोक का आकार सुप्रतिष्ठक - संस्थान बताया गया है, अर्थात्-वह नीचे विस्तृत, मध्य में संकीर्ण और ऊपर मृदंगाकार है। तीन शराबों (सकोरों) में से एक शराब औंधा रखा जाए दूसरा सीधा और तीसरा उसी के ऊपर औंधा रखा जाये तो जो आकृति बनती है वही आकृति (त्रिशरावात्-सम्पुटाकृति: लोक की है। अलोक का आकार मध्य में पोल वाले
गीले जैसा है। (चित्र सामने देखें) सम्परोपाय अव प्रलोक का कोई भी विभाग नहीं है, वह एकाकार है। लोकाकाश तीन भागों में विभक्त है-ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक। तीनों लोकों की कुल लम्बाई १४ रज्जू (राज) है, जिसमें से सात रज्जू से कुछ कम ऊर्ध्वलोक है, मध्यलोक १८०० योजन परिमाण वाला है और अधोलोक सात रज्जू से कुछ अधिक है।
लोक को इन तीन विभागों में विभक्त कर देने के कारण उन तीनों की पृथक्-पृथक् आकृतियां बनती हैं। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय कहीं पर फैले हुए हैं और कहीं संकुचित हैं। ऊर्वलोक में धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय विस्तृत होते चले गए हैं। इस कारण ऊर्वलोक का भाकार मृदंग-सदृश है और मध्यकोक में वे कृश हैं, इसलिए उसका आकार, बिना किनारी वाली झालर के समान है। नीचे की बोर फिर वे विस्तृत होते चले गए हैं । इसलिए अधोलोक का आकार पौंधे शराब के जैसा बनता है यह लोकाकाश को ऊंचाई हुई । उसकी मोटाई सात रज्जू है ।