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________________ M वर्ग-प्रथम] ( १५२ ) [निरयावलिका e rrerare.-.-.--.-.-.-.-.-.-.-.-.___ छाया-कालः खलु भदन्त ! कुमारश्चतुर्थ्याः पृथिव्या अनन्तरमुद्वर्त्य कुत्र गमिष्यति ? कुत्रो. त्पत्स्यते ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे यानि कुलानि भवन्ति आढयानि यथा दृढप्रतिज्ञो यावत् से स्यति भीत्स्यते यावद् अन्तं करिष्यति । तदेवं खलु जम्ब ! श्रमणेन भगवता यावत्संप्राप्लेन निरयावलिकामा प्रथमाध्ययनस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः, इति ब्रवीमि ।।४।। ।। प्रथममध्ययनं समाप्तम् ॥१॥ पदार्थान्वय-कालेणं भन्ते ! कमारे-हे भगवन काल कुमार, चउत्थीए पढवीए-चौथी पृथ्वी से, अणन्तरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ-बिना मन्तर नरक से निकल कर कहां पैदा होगा, कहिं उववज्जिहिइ-कहां उत्पन्न होगा, गोयमा महाविदेह वासे-हे गौतम महाविदेह क्षेत्र में, जाई कुलाइं भवन्ति-जो कुल हैं, अड्ढाइ-ऋद्धिमान धन-धान्य से युक्त, जहा-जैसे, दिढपइन्नोजैसे दृढ़ प्रतिज्ञ कुमार का वर्णन राज प्रश्नीय में कहा गया है, जाव सिज्झिहिइ वुझिहिइ जाव अन्तं काहिह-यावत् सिद्ध होगा , बुद्ध होगा यावत् सब दुःखों (कर्मों) का अन्त करेगा, तं एवं खलुं जम्बू-तो इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू, समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं-श्रमण भगवान यावत् मोक्ष को प्राप्त, निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते-निरयावलिका सूत्र के प्रथम अध्ययन का अर्थ प्रतिपादन किया गया है ।।१४।। __मूलार्थ-(गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं) हे भगवन् ! वह काल कुमार चौथी नरक की आयु पूर्ण करके कहां पैदा होगा? कहां उत्पन्न होगा ? (इस प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर कहते हैं) हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में ऋद्धिमान यावत् धन-धान्य से युक्त कुल में पैदा होगा, जैसे राजप्रश्नीय सूत्र में दृढ़प्रतिज्ञ कुमार का वर्णन है वैसे ही इसका वर्णन समझना चाहिए। फिर वह सिद्ध-बुद्ध मुक्त होगा। यावत् सब (कर्मों) का अंत करेगा, (जो जन्म मरण का कारण हैं) आर्य सुधर्मा अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं "हे जम्बू ! मोक्ष को संप्राप्त श्रमण भगवान ने निरयावलिका सूत्र के प्रथम अध्ययन का यह वर्णन किया है ॥९४।। टीका - भगवान महावीर ने काल कुमार का भविष्य बताते हुए अपने प्रिय शिष्य गणधर इन्द्रभूति को सूचित किया है कि यह काल कुमार चौथी नरक की आयु पूरी करके दृढ़प्रतिज्ञ की तरह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहीं से यह शेष कर्मों का क्षय कर सिद्ध-वुद्ध-मुक्त होगा ।।६४॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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