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निरयावलिका
(१५१)
[बर्ग-प्रथम उत्थानिका-अब सूद्रकार काल कुमार की गति के विषय में कहते हैं
मूल-तं एयं खलु गोयमा ! काले कुमारे एरिसएहिं आरंभेहिं जाव एरिसएणं असुभकडकम्मपन्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमा नरए नेरइयत्ता उववन्ने ॥३॥
छाया-तदेतत् खल गौतम ! कालः कुमार: ईदृशरारम्भविद् ईदशेन अशुभकृतकर्मप्राग्भारेण कालं कृत्वा चतुर्थ्यां पङ्कप्रभायां पृथिव्यां हेमाभे नरके नैरयिकतयोपपन्नः ।।१३।।
पदार्थान्त्रयः-तं एयं खल गोयमा-हे गौतम निश्चय ही, काले कुमारे एरिसहि आरम्ह जाव एरिसएणं असुभकडकम्मषम्भारेण-काल कुमार इस प्रकार के आरम्भ से यावत् इस प्रकार के अशुभ कर्म के प्रभाव से, कालमासे कालं किच्चा-काल मास में काल करके, चउत्थोए पंकप्पभाए पुढवीए हेमामे नरए नेरय इयत्ता उववन्ने-चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नामक नरक-प्रावास में नारको रूप में उत्पन्न हुआ ॥६३।।
मूलार्थ-श्रमण भगवान महावीर ने कथन किया कि- "हे गौतम ! काल कुमार इस प्रकार निश्चय ही आरम्भ यावत् अशुभ कृत्य के कारण, कालमास में काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरकावास में नारकी रूप में उत्पन्न हुआ। ६३॥
___टोका-काल कुमार का भविष्य बताते हुए श्रमण भगवान महावीर ने अपने प्रथम शिष्य गणधर इन्द्रभूति गौतम को बताया कि काल कुमार आरम्भ आदि अशुभ कर्मों के कारण मर कर चौथी नरक पंकप्रभा में हेमाभ नामक पृथ्वी में नारकी वना है। संसार की झूठी माया के पीछे संघर्ष का फल यही होता है । संग्राम में प्रायः तीनों योगों से हिंसा होती है, अत: उक्त क्रियाओं के त्याग से आत्मा को शान्ति की प्राप्ति हो सकती है ।।३।। उस्थानिका- अब इसी विषय में आगे कहते हैं और इस सूत्र का उपसंहार करते हैं।
मूल-काले णं भंते ! कुमारे चउत्थीए पुढवीए अणंतरं उवट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ?।।
गोयमा । महाविदेहे वासे जाइं कुलाई भवंति अड्ढाइं जहा दृढप्पइन्नो जाव सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ । तं एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं निरयावलियाणं पडमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते तिबेमि ॥४॥
॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥१॥