________________
निश्यावलिका ]
( १४६ )
| वग- प्रथम
में
मूलार्थ–तत्पश्चात् दोनों राजाओं की सेनायें अपने-अपने स्वामी के अनुशासन अनुरक्त होकर बहुत से लोगों का क्षय, वध, प्रमर्दन करने लगी जिससे मृतकों के सिरों की बहुत संख्या हो गई । युद्ध-स्थल में सिर के बिना धड़ नाच रहे थे । हाथियों का रूप भयंकर हो गया । मैदान को खून के कीचड़ से भरते हुए योद्धा परस्पर लड़ने लगे ॥ ९१ ॥ ।
टीका - प्रस्तुत सूत्र में युद्ध का वर्णन करते हुए बताया गया है कि यह युद्ध कितना भयंकर था। दोनों ओर के सैनिक अपनी-अपनी स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए बहादुरी से अपने प्राणों की अहुतियां देने लगे । इस सूत्र में कुछ शब्द ध्यान देने योग्य हैं
"नियग सामीसासणाणुरत्ता” का अर्थ अपने स्वामी की भक्ति में अनुरक्त हुए
" जणसंवट्टक" का अर्थ है जिस प्रकार संवर्तक वायु चारों ओर से वस्तु एकत्र करती है। इसी प्रकार इस रथ मुशल में संग्राम में सैनिकों के शिर इकट्ठ े हो रहे थे । "नच्चे तक बंधवार भीमं " अर्थात् सिर के घड़ नाच रहे थे । ।।१।।
उत्थानिका- अब सूत्रकार कॉल कुमार के विषय में कहते हैं
मूल-तएण से काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव मणुस्सकोडी हिं गरुलवणं एक्कारसमेणं बंधेणं कूणियरहमुसलं संगामं संगामेमाणे हयमहियजहा भगवया कालीए देवीए परिकहियं जाव जीवियाओ ववरोबिए ||२||
छाया—ततः खलु स कालः कुमारस्त्रिभिर्दन्तिसहस्रर्यावन्मनुष्यकोटिभिर्गरुडव्यूहेन एकादशेन स्कन्धेन कूणिकरथमुशलं संग्रामं संग्रामयन् हतमथितयथा भगवता काल्यै देव्यै परिकथितं यावज्जीविताद् व्यपरोपिताः ||६२।।
पदार्थान्वयः—तएणं– तत्पश्चात्, से काले कुमारे-- वह काल कुमार, तिहि दंन्तिसहस्सेहितीन हजार हाथियों, जाव - यावतृ मणुस्सकोडीहि-करोड़ों सैनिकों को साथ लेकर, गरुल वहेणं - गरुड़ व्यूह से, एक्कारसमेणं खंधेणं - अपनी सेना के एकादश भाग सहित, कूणिएणं रन्ना सद्धि-कोणिक राजा के साथ रह कर, रहमुसलं संगामं संगामेमाणे - रथ मुशल संग्राम में संग्राम करता हुआ, हयमहियंजहा - हतमथित हो गया अपना होश- हवास खो बैठा जैसे, कालीए देवीए परिकहि-काली देवी के प्रति (भगवान) ने कहा, जाव- यावत्, जीवियाओ ववरोविए - जीवन व्यतिरिक्त हो गया अर्थात् मारा गया ||२||