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वर्ग-प्रथम]
(१४६)
। निरयावलिका
उत्थानिका-अब सूत्रकार राजा चेटक की व्यूह-रचना के विषय में कहते हैं -
मूल-तएणं से चंडए राया सत्तावन्नाए दंतिसहस्सेहिं जाव सत्तावन्नाए मणुस्सकोडीहिं संगडवूहं रएइ, रइत्ता सगडवूहेणं रहमसलं संगाम उवायाए। ८६॥
छाया-तता खलु सः चेटको राजा सप्तपञ्चाशद्भिः दन्तिसहस्रर्यावत् सप्तपञ्जाशद् भा मनुष्यकोटिभिः शकटव्यूह रचयति, रचयत्विा शकटव्यू हेन रथमुसलं संग्राममुपायातः ।। ८ ।।
पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, से चेडए राया-वह राजा चेटक, सत्तावन्नाए दन्तिसहस्सेहिं नाव सत्तावन्नाए मणुस्ससोडीहिं सगड-वूहं रइए रइत्ता-सत्तावन हजार हाथियों यावत् सत्तावन करोड़ मनुष्यों से युक्त होकर शकट-व्यूह की रचना करता है, रचना करके, सगड़वहेणं रहमुसलं संगामं उवायाए-शकट-व्यूह की रचना करके रथ-मुशल संग्राम को लक्ष्य में रख कर युद्धभूमि में आता है ।।८६॥
मूलार्थ-तत्पश्चात् वह राजा चेटक सत्तावन हजार हाथियों और सत्तावनसत्तावन हजार घोड़ों और रथों के तथा सत्तावन करोड़ सैनिकों के साथ आकर शकटव्यूह की रचना करता है । रचना करके शकट-व्यूह द्वारा रथमूसल संग्राम को लक्ष्य में रख कर युद्ध-भूमि में उतरता है ।।८९॥ .
टोका-प्रस्तुत सूत्र में वैशाली मणराज्य-प्रमुख राजा चेटक द्वारा शकट-व्यूह की रचना द्वारा रथ-मूसल संग्राम में उतरने का वर्णन है।
शकट-व्यूह की रचना इस प्रकार होती है-सबसे आगे के हिस्से में ज्यादा शकट, बीच में इनकी संख्या कम होती जाती है, पिछला भाग में फिर विशाल होता है। यहां यह ध्यान रहना चाहिए कि जहां कोणिक ने गरुड़-व्यह की रचना की है वहां राजा चेटक ने शकट-न्यूह की रचना की है । अतः इस सूत्र से सिद्ध होता है कि युद्ध-विशेषज्ञ सेना की तैनाती इस प्रकार करते थे कि शत्रु का व्यूह-भेदन किया जा सके ॥६॥
उत्थानिका- तत्पश्चात् क्या हुआ, अब सूत्रकार इस विषय में कहते हैं
मूल-तएणं ते दोण्ह वि राईणं अणीया सन्नद्धा जाव गहियाउहपहरणा मंगतिएहिं फलएहि निक्कटाहिं असीहि, अंसागएहि तोहिं,