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________________ निरयावलिका] (१४५ ) [वर्ग-प्रथम यह सूचित किया है कि अपने-अपने देश की सीमा पर दोनों राजाओं की सेनाएं स्थित हो गई थीं। यह योजन-भूमि दोनों पक्षों की ओर से निश्चित की गई होगी। क्योंकि तत्कालीन युद्ध के नियमानुसार जो राजा दूसरे की सीमा में प्रविष्ट होकर युद्ध करते हुए आगे बढ़ जाता था उसे ही विजयी माना जाता था। . प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि दोनों राजाओं की सेना युद्ध-परम्परा के अनुसार युद्धभूमि को शुद्ध करती है। जिस प्रकार मल्ल मल्लयुद्ध के लिये अपना-अपना स्थान (अखाड़ा) शुद्ध करते हैं ठीक उसी प्रकार दोनों राजाओं ने रणभूमि को शुद्ध किया-एक योजन भूमि को ठीक किया-कांटे, झाड़ियां आदि साफ की गई। जिससे सेना शीघ्रता से आगे बढ़ सके। इस प्रकार साफ की हुई रण भूमि में पहुंच कर वे युद्ध के लिये सुसज्जित होने लगे ॥८७।। उन्थानिका-फिर पूर्वोक्त बिषय में कहते हैं मूल-तएणं से कूणिए तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहिं जाव मणुस्सकोडोहिं गरुलवूह रइए, रइत्ता गरुलवूहेणं संगाम उवायाए ॥१८॥ छाया-ततः खलु स कूणिकस्त्रयस्त्रिशता दन्तिसहस्रर्यावन्मनुष्यकोटिभिर्गरुडव्यूह रचयति, रच यित्वा गरुडव्यूहेन रथमुशलं सङ्ग्राममुपायातः ।।८।। पदार्थान्वय:-तएणं से कूणिए-तत्पश्चात् व राजा कोणिक, तेत्तीसाए दन्तिसहस्सेहितेंतीस हजार हाथियों के सहित, जाब-यावत्, मणुस्सकोडीहिं-एक करोड़ सैनिकों सहित, गरुलहेणं-गरुड़ व्यूह रच कर, रह-मुसलं संगाम, उवायाए-रथ मूसल संग्राम के लिये प्रा गया ॥८८।। मूलार्थ-तत्पश्चात् उस राजा कोणिक ने तेंतीस हजार हाथियों एवं तेंतीसतेंतीस हजार घोड़ों, रथों और कोटि पैदल सैनिकों से युक्त होकर गरुड-व्यूह की रचना की। गरुड-व्यूह की रचना करके वह राजा कोणिक रथ-मूशल संग्राम की तैयारी में प्रवृत्त हुआ ॥१८॥ ___टोका-प्रस्तुत सूत्र में राजा कोणिक द्वारा वैशाली के सीमान्त के समीप गरुड़-व्यूह की रचना करने का वर्णन है। गरुड़-व्यूह का अर्थ है जिस सेना का अग्र भाग विशाल हो, जिससे शत्रु पर प्रभाव पड़ सके वही सेना प्रथम आक्रमण करती है। ___ रथ मूसल संग्राम का विशद वर्णन भगवती सूत्र में आता है । जिज्ञासुओं को उस स्थल का स्वा ध्याय करना चाहिये ।।८।।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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