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बर्ग - प्रथम ]
( १४४ )
[ निरयावलिका
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चंडयस्स रन्नो जोयणंतरियं खंधावार
निवेस करेइ ।
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तणं से दोन्निवि रायाणो रणभूमि सज्जावेति, सज्जावित्ता रणभूमि जयंति ॥८७॥
छाया - ततः खलु स कूणिको राजा सर्वद्वर्या यावद् रवेण यत्रैव देशप्रान्तस्तत्रैवोपागच्छति उपागत्य चेटकस्य राज्ञो योजनान्तरितं स्कन्धावार निवेशं करोति ।
ततः खलु तौ द्वावपि राजानौ रणभूमि सज्जयतः, सज्जयित्वा रणभू यातः ॥ ८७ ॥
पदार्थान्वयः - तएणं – तत्पश्चात्, से कूणिए राया- वह राजा कोणिक, सध्विड्डीए जाव रवेणं यावत् सर्व ऋद्धि-युक्त एवं वाद्य यन्त्रों के स्वरों के साथ, जेणेव देसपन्ते नेणेव उवागच्छ उवागच्छित्ता - जहां मगध देश की सीमा थी वहां वह आया और आकर, चेडयस्स रन्नो जोयणन्तरियं - राजा चेटक के एक योजन के अन्तर से रवन्धावारनिवेस करेइ - सेना का स्कन्धावार अर्थात् सैनिक छावनी को ठहराता है ।
तए - तत्पश्चात्, ते दोन्नि वि रायाणो रणभूमि सज्जावेन्ति सज्जावित्ता- वे दोनों राजा भूमि को सजाते हैं अर्थात् व्यूह रचना करते हैं, और सजा कर, रणभूमि जयंति रण भूमि में जीतने की इच्छा करते हैं ||८७||
मूलार्थं–तत्पश्चात् राजा कोणिक सर्व ऋद्धि-युक्त यावत् वाघ-यंत्रों के साथ जहां मगध देश की सीमा थी वहां आया और आकर राजा चेटक से एक योजन की दूरी पर अपनी सेना का पड़ाव डाल दिया ।
तत्पश्चात् वे दोनों राजा रणभूमि को शुद्ध करते हैं, अर्थात् झाड़-झंखाड़ साफ कर युद्ध के योग्य व्यूह बनाते हैं, शुद्ध करके, रण भूमि में जीतने की इच्छा से आते हैं ।। ८७ ।
टीका - तब वह राजा कोणिक सर्व राजकीय ऋद्धियों के साथ यावत् वाद्य-यन्त्रों की ध्वनियों के साथ मगध देश की सीमा पर पहुंचकर राजा चेटक से एक योजन के अन्तर पर स्कन्धावार अर्थात् अपनी सैनिक छावनी डाल देता है । सारांश यह कि उसने राजा चेटक से एक योजन की दूरी पर अपना स्कन्धावार स्थापित किया । एक योजन के कहने का सारांश यह है कि दोनों देशों की एक-एक योजन भूमि में युद्ध करने का निश्चय किया गया था और 'देशपंत' इस पद से