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निरयावलिका
(१४३ )
वर्ग-प्रथम
तएणं-तत्पश्चात्, चेडए राया-फिर वह राजा चेटक, सत्ताबन्नाएदन्ति-सहस्सेहि. सत्तावनाए आससहस्सेहि, सत्तावन्नाए रहसहस्सेहि, सत्तावन्नाए मणुस्सकोडीहिं सद्धि संपरिवुडे-सत्तावन हजार हाथियों, सत्तावन हजार घोड़ों, सत्तावन हजार रथों और सत्तावन करोड़ मनुष्यों (संनिकों) से घिरा हुमा, सविडोए जाव-यावत्, रवेणं-सर्व ऋद्धि-युक्त यावत् वाद्य यन्त्रों के स्वरों के साथ, सुभेहि वसहीहि-शुभ बस्तियों में पड़ाव डालता हुआ, पायरासेहि-प्रातःकालीन जलपानादि करता हुआ, नाइविप्पगिहिं अंन्तरेहि वसमाणे वसमाणे-अति लम्बा रास्ता न तह करता हुआ, मार्ग में पड़ाव डाल कर निवास करता हुआ, विदेहं जणवयं मझमझेणं-विदेह देश के बीचों-बीच से होता हुआ, जेणेव देसपन्ते-जहां देश की सीमा थी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता-वहां आता है और आकर, खन्धावार - निवेसणं करेइ-सेना का पड़ाव डलवा देता है और, कणिय रायं पडिवालेमाणे जुद्धसज्जे चिट्ठ इ-और राजा कोणिक की प्रतीक्षा करता हमा युद्ध-क्षेत्र में आकर ठहर जाता है ।।८६।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् वह राजा चेटक तीन हजार हाथियों के साथ, जैसे कोणिक राजा यावत् चम्पा नगरी के मध्य में से होता हुआ, निकलता है, (वैसे ही यह भी वैशाली नगरी से निकला) और निकलकर, जहां वे नवमल्ली नवलिच्छवी काशी कौशल देश के अठारह गण राजा उपस्थित थे वहां आया और वहां आकर वह राजा चेटक सत्तावन हजार हाथी, सत्तावन हजार घोड़े, सत्तावन हजार रथ, सत्तावन करोड़ मनुष्यों (सैनिकों) के साथ घिरा हुआ यावत् सर्व ऋद्धि युक्त वाद्य यंत्रों के शब्दों के साथ शुभ स्थानों पर पड़ाव डालता हुआ प्रात:कालीन भोजन ग्रहण करते हुए लम्बी यात्रा न करता हुआ विदेह देश के बीचों-बीच से होता हुआ. जहां अपने राज्य की सीमा थी, वहां आता है और वहां आकर सेना का पड़ाव डालता है । अब वह राजा कोणिक की प्रतीक्षा करता हुआ युद्ध के लिये ठहर जाता है ।।८६।।
टोका-राजा चेटक अपनी सेना के साथ चलता हुआ जहां पर नवमल्ली नव लिच्छवी अठारह काशी कौशल आदि के अन्य गणराजा थे उनसे आकर मिला। चेटक उनका प्रमुख राजा था, इसलिए राजा चेटक विशाल सेना के साथ सुसज्जित होकर विदेह देश की सीमा पर आ पहुंचा और वहां कोणिक राजा की युद्ध के लिये प्रतीक्षा करने लगा॥८६॥
उत्थानिका-तत्पश्चात् क्या हुआ ? अब सूत्रकार इसी विषय में कहते हैं
मूल-तएणं से कूणिए राया सविड्ढीए जाव रवेणं जेणेव देसपंते