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________________ वर्ग-प्रथम] (१४२) [ निरयावलिका 4888888888ARRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRB 8 %999999 ___टीका-प्रस्तुत सूत्र में राजा चेटक की युद्ध-स्थल में जाने की तैयारी का वर्णन किया गया है। राजा चेटक युद्ध के योग्य हाथी को तैयार करने की अपने सेवकों को प्राज्ञा देता है। सेवक आज्ञा का पालन करते हुए हाथी तैयार करके प्रस्तुत करते हैं। राजा चेटक भी राजा कोणिक की तरह उस हाथी पर सवार होता है ।।५।। उत्थानिका-अब सूत्रकार पूर्वोक्त विषय में ही पुनः कहते हैं मूल-तएणं से चेडए राया तिहिं दंतिसहस्सेंहिं जहा कूणिए जाव वेसालि नरि मज्झं-मज्झेणं निगच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव ते नवमल्लइनवलेच्छइ-कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायोणो तेणेव उवागच्छइ।.. तएणं से चेडए राया सत्तावन्नाए दंतिसहस्सेहि, सत्तावन्नाए आससहस्सेहि, सत्तावन्नाए रहसहस्सेहिं सत्तावन्नाए मणुस्सकोडीएहिं सद्धि संपरिवुडे सविड्ढीए जाव रवेणं सुहिं वहिं पायरासेहिं नातिविप्पगिठेहिं अंतरेहि वसमाणे-वसमाणे विदेहं जणवयं मज्झं-मज्झेणं जेणेव देसपते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खंधावारनिवेसणं करेइ, कूणियं रायं पडिवालेमाणे जुज्झ-सज्जे चिठ्ठइ ॥८६॥ छाया-ततः खलु स चेटको राया त्रिभिदंन्तिसहस्र्यथा कणिको याद वैशाली नगरी मध्यमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव ते नवमल्लकी -- नवलेच्छ की-काशी-कौशलका अष्टादशापि गणराजास्तत्रवोपागच्छति। तत खलु स चेटको राजा सप्तपञ्चाशता दन्तिसहस्र सप्तपञ्चाशता अश्वसहस्रः, सप्तपञ्चाशता रथसहस्रः, सप्तपञ्चाशता मनुष्यकोटिभिः, सार्द्ध संपग्वित' सर्वर्द्धर्या यावद् रवेण शर्वसतिप्रातराशै तिविप्रकृष्टैरन्तरर्वसन् वसन् विदेह जनपदं मध्यं-मध्येन यत्रैव देशप्रान्तस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य स्कन्धावारनिवेशनं करोति, कृत्वा कुणिक राजानं प्रतिपाल यन् युद्धसज्जस्तिष्ठति ।।६।। पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात, से चेडए राया-वह राजा चेटक, तिहि दन्तिसहस्सेहितीन हजार हाथियों के साथ, जहा काणए जाव-जैसे कोणिक राजा यावत्, वेसालियर मज्झंमज्झणं निगच्छइ निग्गच्छित्ता-वैशाली नगरी के बीचों-बीच होता हुआ आता है और आकर; जेणेव ते नव मल्लइ, नव लेच्छइ अट्ठारस वि गणरायाणो-नव मल्ली, नव लिच्छवी और काशी कौशल देशों के अठारह गणराजा थे, तेणेव उवागच्छइ-वहीं पर प्राता है।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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