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निरयावलिका]
(१४१)
[वर्ग-प्रथम
मूलार्थ-तत्पश्चात वह राजा चेटक उन नव मल्ली, नव लिच्छवि, काशी कौशल देशों के अठारह गणराजाओं को इस प्रकार कहने लगा-हे देवानुप्रियो ! आप लोग पहले अपने-अपने राज्यों में जाओ और स्नानादि क्रियायें करो। जैसे कालादि दश कुमार राजा कोणिक के पास आए हैं इसी प्रकार के राजा लोग चेटक के पास जय - विजय शब्दों के साथ वधाई देते हुई लौट आए।
टीका-सभी गणराजाओं ने जब युद्ध के प्रति अपनी सहमति प्रदान की तो वैशाली गणराज्य प्रमुख राजा चेटक ने अपने यहां आए नव मल्ली, नव लिच्छवि काशी-कौशल देशों के अठारह गणराजाओं से कहा कि आप भी युद्ध की तैयारी करें" सभी राजा अपने अपने प्रदेश में जाते हैं फिर सैनिक दल-बल के साथ राजा चेटक के पास आते हैं। सूत्रकार का कथन है कि इन राजाओं की युद्ध की तैयारी व राजा चेटक के पास पाने का वर्णन कालादि दश कुमारों की तरह है जिसका सूत्रकार ने वर्णन पहले कर दिया है ।।८४॥
मूल-तए णं से चेडए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासो-आभिसेक्कं जहा कूणिए जाव दुरूढे ॥१५॥
छाया-ततः खलु स चेटको राजा कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत्आमिषेक्यं यथा कूणिको यावद् दूरूढः ।।८५॥
पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, से चेडए राया-वह राजा चेटक, कोडम्बियपुरिसे सहावेई सदावित्ता-अपने कोटुम्बिक पुरुषों को बुलाता है और बुलाकर, एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा, अभिसेक्क जहा कुणिए जाव दुरुढे हे देवानुप्रिय अभिषेक युक्त हस्तिरत्न को तैयार करो, जिस प्रकार कोणिक राजा हाथी पर आरूढ़ हुआ, यावत् उसी प्रकार चेटक भी हाथी पर सवार हो गया ॥८॥
मूलार्थ-तत्पश्चात् वह राजा चेटक कौटुम्बिक पुरुषों अर्थात् अपने अधिकारी वर्ग को बुलाकर आज्ञा प्रदान करता है-हे देवानुप्रियो ! अभिषिक्त हाथी लाने की तैयारी करो। (यहां हाथी पर आरूढ़ होने तक का समस्त वर्णन राजा कोणिक की तरह जानना चाहिए), अर्थात् राजा चेटक भी वैसे ही हस्ती-रत्न पर आरूढ़ हुआ।