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वर्ग-प्रथम]
(१४०)
[निरयावलिका
शरणागत को शरण न दी जाए। यदि को णिक युद्ध के लिये आ रहा है तो हम सब युद्ध के लिए तैयार हैं । पर शरणागत को लौटाना किसी भी तरह ठीक नहीं।
प्रस्तुत सूत्र से सिद्ध होता है कि सभी राजा महाराजा चेटक को अपना प्रमुख मानते थे। यह बात उनके द्वारा प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों से सिद्ध हो रही है।
___ "न एवं सामी ! जुत्तं वा पत्तं वा रायसरिसं वा" "हे स्वामिन् !" यह सम्बोधन इस बात को सिद्ध करता है। जबकि राजा चेटक उन्हें देवानप्रिय-शब्द से सम्बोधित करता है। प्रस्तुत सूत्र में सभी राजा अपने स्वामी के प्रति निष्ठा प्रकट करते हैं ।।८३॥
उत्थानिका-उन गण राज्यों को चेटक राजा ने आगे क्या कहा, अब सूत्रकार इस विषय में आगे
कहते हैं
मूल-तए णं से चेडए राया ते नवमल्लइ-नवलेच्छइ-कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाओ एवं वयासी-जइणं देवाणुपिया! तुब्भे कूणिएणं रन्ना सद्धि जुज्झइ, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया! । सएसु-सएस-रज्जेस हाया जहा कालादीया जाव जएणं विजएणं वद्धाति ॥८४॥ .
छाया-ततः खलु सः चेटको राजा तान् नवमल्ल कि-नवलेच्छकि-काशी-कौशलकान् अष्टादशापि गणराजान् एवमवादीत्-यदि खलु देवानुप्रियाः ! यूयं कूणिकेन राजा सार्द्ध युध्यध्वं, तद् गच्छत खलु देवानुप्रियाः ! स्वकेषु स्वकेषु राज्येषु, स्नाता कालादिका यावद् जयेन विजयेन वर्द्धयन्ति ॥४॥
पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, से चेडए राया-वह राजा चेटक, नव मल्लई, नव लेच्छइ, कासी कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो एवं वयासी-नवमल्ली, नव लिच्छवी, काशी कौशल प्रादि देशों के अठारह गणराजाओं के प्रति इस प्रकार कहने लगा जइ णं देवाणुप्पिया-यदि हे देवानुप्रियो ! तुम्भे कृणिएणं रन्मा सद्धि जुज्झइ-आप कोणिक राजा के साथ युद्ध करना चाहते हो, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया- देवानुप्रियो (आप) जामो, सएसु सएसु रज्जेसु-अपने अपने राज्यों में, व्हाया-स्नानादि क्रियायें करके, जहा—जैसे, कालाइया-कालादि दश कुमार कोणिक पास) पाए थे, जाव-यावत्, जएणं विजएणं वद्धावेन्ति-राजा चेटक के समीप जय-विजय शब्दों से वधाई देते हैं (वैसा आप भी करें)॥४॥