________________
निरयावलिका ]
[ बर्ग - प्रथम
छाया - ततः खलु नवमल्ल कि –नवलेच्छकि - काशी - कौशल का अष्टादशापि गणराजाइचेटकं राजानमेवमवादिषु: -- नैतत् स्वामिन् ! युक्तं वा प्राप्तं व राजसदृशं वा यत्खलु सेचनकमष्टाशव कूणिकाय राज्ञे प्रत्ययंते, वेहल्लश्च कुमार: शरणागतः प्र ेष्यते, तत् यदि खलु कूणिको राजा चातुरङ्गिया सेनया सार्द्धं संपरिवृतो युद्धसज्ज इह हव्यमागच्छति तदा खलु वयं कूणिकेन राजा सार्द्धं युध्यामहे ।।८३||
( १३६ )
पदार्थान्वयः - तरणं - तत्पश्चात् नव मल्ल इ-नवलेच्छइ - नव मल्ली व नव लिच्छवि, कासी को लगा अट्ठारस वि गणरायाणो - काशी- कौशल के अठारह गणराजा, चेडगं रायं एवं वयासी - राजा चेटक से इस प्रकार बोले, न एयं सामी - हे स्वामी ! इस प्रकार न करें, क्योंकि जुत्तं वा पत्तं वा-यह उपयुक्त नहीं, अर्थात् ठीक नहीं है, और न्याय से प्राप्त को लौटाना, रायसरिसं वाराजा के योग्य नहीं है, जं णं- जो कि आप, सेयणगं अट्ठारसबंकं कुणियस्स रन्नो पच्चप्पिणिज्जइजैसे कि सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार कोणिक राजा को वापिस लौटा रहे हैं, बेहल्ले य कुमारे सरणागए पेसिज्जइ - शरणागत वेहल्ल कुमार को वापिस भेज रहे हैं, तं जइणं कूणि राया - तो यदि कोणिक राजा, चाउरङ्गिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडे जुज्झसज्जे इहं हव्वमागच्छइ - चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत होता हुआ युद्ध के लिए सुसज्जित होकर यहां शीघ्र ही आ रहा है, तणं अम्हे कूणिएणं रन्ना सद्धि जुज्झामो - तो हम कोणिक राजा के साथ युद्ध करेंगे ||८३ ||
मूलार्थ-तत्पश्चात् वे नव मल्ल जाति के, नव लिच्छवी जाति के एवं काशी तथा कौशल देश के अठारह गणराज्य चेटक राजा के प्रति इस प्रकार कहने लगे - हे स्वामिन् यह युक्त (योग्य) नहीं है, न्याय से प्राप्त को लौटना उचित नहीं है । यह राजा के योग्य भी नहीं है कि सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ियों के हार को कोणिक राजा को वापिस कर दिया जाये । साथ में शरण में आए हुए वेहल्ल कुमार को वापस भेज दिया जाये ।
स्वामिन् । यदि कोणिक चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत हुआ युद्ध के लिये सुसज्जित होकर शीघ्र ही यहां आ रहा है, तो हम कोणिक राजा के साथ युद्ध करेंगे ।। ८३ ।
टीका - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि जब नव मल्ली नव लिच्छवि, काशी-कौशल देशों के अठारह राजाओं ने अपने गण प्रमुख की बात सुनी तो आपस में विचार-विमर्श किया। सभी राजा न्याय प्रिय थे । शरण में आए शरणागत की रक्षा करने व राजा के कर्त्तव्यों से भली भान्ति अवगत थे। सभी आपसी विमर्श के बाद राजा चेटक के पास आए और आकर निवेदन कियाहे स्वामी ! यह बात उचित नहीं है न ही न्याय से प्राप्त को लौटना उचित माना जा सकता है क्योंकि गुणवान व्यक्ति अयोग्य कार्य नहीं कर सकता। यह बात न ही राजा के योग्य है कि