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________________ वर्ग-प्रथम ] ( १३८ ) [निरयावलिका दिया अर्थात् वस्तुएं लौटाने से इन्कार कर दिया। तत्पश्चात् कोणिक राजा मेरे इस अर्थ बात को न स्वीकार करते हुए चतुरंगिणो सेना से संपरिवृत (घिरा हुआ) युद्ध के लिए तैयार होकर यहां शोघ्र आ रहा है । हे देवानुप्रियो ! क्या मैं सेचनक गधहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार उसे वापिस लौटा दूं ? वेहल्ल कुमार को भी वापिस भेज दूं ? अथवा उससे युद्ध करूं ? टोका-प्रस्तुत सूत्र में बतलाया गया है कि जब वैशाली गणतन्त्र के प्रमुख राजा चेटक को ज्ञात हुआ कि कोणिक अपने दस भाइयों व विशाल सेना के साथ इधर आ रहा है तो उस चेटक राजा ने नवमल्ल-नव लिच्छवि, काशी-कौशल देशों के अठारह गणराजाओं को वैशाली में बुलवाया। प्राचीन काल में छोटे-छोटे राजा मिलकर गण-परिषद् बनाते थे जो युद्ध आदि के समय अपनीअपनी सेनाओं के साथ आकर युद्ध में भाग लेते थे। राजा चेटक उन सभी राजाओं का प्रमुख था। उसने सभी राजाओं को वस्तु-स्थिति से अवगत कराया। राजा चेटक ने कहा "हे देवानुप्रियो ! वेहल्ल कमार सपरिवार बिना किसी को बताए सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार लेकर मेरी शरण में आया है। ये वस्तयें राजा श्रेणिक ने अपने जीवन-काल में ही वेहल्ल कुमार को दी थीं. इसलिए कोणिक राजाका इन पर कोई अधिकार नहीं है। इन वस्तों के लिये राजा कोणिक तीन दूत भेजे । मैंने इन दूतों की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। इन बातों से स्पष्ट होता है कि प्रात्रीन गणराज्यों में निर्णय सर्व-सम्मति या बहुमत से किए जाते थे। इन सूत्रों से राजा चेटक की शरणागत-रक्षा की भावना भी झलकती है, फिर चेटक राजा उन गणराजाओं से पूछता है कि क्या हमें युद्ध करना उचित है ? या वेहल्ल कुमार सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाले हार की वापिसी उचित है ।।२।। उत्थानिका-चेटक राजा को इन गणराजाओं ने क्या उत्तर दिया, अब सूत्रकार इसी विषय में कहते हैं मूल-तएणं नवमल्लइ-नवलेच्छइ-कासी-कोलसगा अट्ठारस वि गणरायाणो चेडगं रायं एवं वयासी-न एयं सामी ! जुत्तं वा पत्तं वा सम्हे कोणएण रणो साख जुज्झामकं कृशियस्स रन्नो पच्चप्पिणिज्जइ, बेल्ले य कुमार सरणागए पलिज्जइ, तंजइयं अपिए या नारंगिणीए संगाए तद्धि संगरिदुई जन्मसन्जेई इनसागच्छद, तो मं अम्हे कूणिएणं रण्णा सद्धि जुज्झामो ॥३॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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