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________________ निरयावलिका) (१३७) [वर्ग-प्रथम इह हव्यमागतः । ततः खलु कणिकेन सेचकस्य अष्टादशवकस्य चार्थाय त्रयो दूताः प्रेषिताः, ते च मयाऽनेन कारणेन प्रतिषिद्धाः । ततः खलु स कणिको मम एतमर्थमप्रतिशृण्वन् चातुरङ्गिण्या सेनया सार्द्ध संपरिवृतः युद्धसज्ज इह हव्यमागच्छति, तत् किं नु देवानुप्रियाः । सेचनकंमष्टादशवक्र च कूणिकाय राज्ञे प्रत्यर्पयामः, वेहल्लं कुमारं प्रेषयामः ? उताहो युध्यामहे ? ॥२॥ पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, से चेडए राया-वह राजा चेटक, इमोसे कहाए लद्ध? समाणे-इस कथा (समाचार) के प्राप्त होने पर, नव मल्लई-नव मल्ल जाति के, नव लेच्छईनव लिच्छवि जाति के, कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो सद्दावेइ सद्दावित्ता-काशी कौशल देशों के अट्ठारह गण-राजाओं अर्थात् गणराज्य-प्रमुखों को बुलवाता है और बुलवाकर, एवं वयासीइस प्रकार कहता है, एवं खलु. देवाणुप्पिया-इस प्रकार हे देवानुप्रियो निश्चय ही, वेहल्ले कुमारे-वेहल्ल कुमार, कूणियस्स रन्नो-कोणिक राजा को, असंविदित्ते णं-बिना किसो पूर्व सूचना के, सेयणगं अट्ठारसबंकं च हारं गहाय इहं हव्व मागए-सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ियों बाला वक्र हार ग्रहण करके शीघ्र ही यहां आ गया है, तएणं-तत्पश्चात्, कूणिएणं सेयणमस्स अट्ठारसबंकस्स य अठ्ठाए - कोणिक राजा ने उस सेचनक गन्धहस्ती और अठारह लड़ियों के हार को लौटाने केलिये, तो या पेसिया-तीन दूत भेजे, ते य मए इमेणं कारणेणं पडिसेहिया--मैंने इस कारण से उनका प्रतिषेध कर दिया, अर्थात् उन्हें वापिस लौटा दिया। तएणं-तत्पश्चात्, से कूणिए राया-उस कोणिक राजा ने, ममं एयमढ़-मेरे इस अर्थ को; अपडिसुणमाणे-स्वीकार न करते हुए (न सुनते हुए), चाउरङ्गिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडेचतुरंगिणी सेना से घिरा हुआ, जुद्धसज्जे इह हव्वमागच्छइ-यहां शीघ्र ही युद्ध के लिये सुसज्जित होकर आ रहा है, तं किं नु देवानुप्पिया-तो क्या हे देवानुप्रियो !, सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वक • 'हारं च-सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार, कणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामो-कोणिक राजा को वापिस लौटा दूं ? वेहल्लं कुमारं पेसेमो- वेहल्ल कुमरको भी वापिस लौटा दूं, उदाहु जुज्झित्था-अथवा उसके साथ युद्ध करूं ।।२।। मूलार्थ-तत्पश्चात् वह राजा चेटक यह समाचार प्राप्त होने पर अर्थात् ज्ञात होने पर उसने नव मल्ली, नव लिच्छवि, काशी, कौशल देशों के अठारह राजाओं को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा कि-हे देवानुप्रियो ! इस प्रकार निश्चय हो वेहल्ल कुमार राजा कोणिक को बिना सूचित किए सेचनक गंधहस्ती व अठारह लड़ियों वाले हार के साथ यहां शीघ्रता से आ गया है। तत्पश्चात् कोणिक राजा ने सेचनक गन्धहस्ती व अठारह बड़ियों वाले हार के लिये तीन दूत भेजे। मैंने उनको इस कारण इस
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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