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वर्ग-प्रश्वम]
( १३६ )
[निरयावलिका
वाद्य-यंत्रों के स्वरों सहित, मंगलमय स्थानों पर पड़ाव डालता हुआ निकला, फिर सुबह के भोजन को ग्रहण करता हुआ, अधिक यात्रा न करके मार्ग में पड़ाव डालता हुआ, विश्राम करता हुआ अंग देश के बीचों-बीच होकर, जहां विदेह देश की वैशाली नगरी थी वहां जाने के लिये उसने प्रस्थान किया ॥१॥
टीका-प्रस्तुत सूत्र में राजा कोणिक का कालादि दश भाइयों व उनकी विशाल सेनाओं के साथ युद्ध में उतरने का वर्णन है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य हैं कि राजा कोणिक ने विदेह देश पर सीधा आक्रमण नहीं किया, बल्कि वह पाराम से रास्ते में पड़ाव डालता हुआ विदेह देश की राजधानी वैशाली की सीमा पर पहुंचा। उसने आते ही युद्ध प्रारम्भ नहीं किया। प्राचीन काल में निरपराधी लोग युद्ध में न मारे जायें इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था और युद्ध निश्चित मैदानों में ही लड़ा जाता था।।८१॥
उत्थानिका-जब कोणिक राजा ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया तो वैशाली नरेश चेटक ने क्या किया ?
___अब इसका वर्णन सूत्रकार प्रस्तुत सूत्र में करते हैं।
मूल-तएणं से चेडए राया इमोसे कहाए लद्धठे समाणे नवमल्लइनवलेच्छइ-कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो सद्दावेई, महावित्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! वेहल्ले कुमारे कूणियस्स रन्नो असंविदित्ते णं सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसबंकं च हारं गहाय इहं हन्वमागए, तए णं कूणिएणं सेयणगस्स अट्ठारसबंकस्स य अठाए तओ दूया पेसिया, ते य मए इमेणं कारणेणं पइिसे हिया। ____तएणं से कूणिए ममं एयमळं अपडिसुणमाणे चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे जुज्झसज्जे इहं हव्वमागच्छइ, तं किं नु देवाणुप्पिया ! सेयणगं अट्ठारसबंकं च कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामो ? वेहल्लं कुमारं पेसेमो ? उदाहु जुज्झित्था ॥२॥
___छाया-ततः खलु स चेटको राजा अस्याः कथाया लब्धार्थः सन् नवमल्लकि-नवलिच्छविकाशी-कौशलकान् अष्टादशापि गण-राजान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत् - एवं खलु देवानुप्रियाः ! वेहल्लः कुमारः कणिकस्य राज्ञा असंविदितेन सेचनकं गन्धहस्तिनमष्टादशवक्रच हारं गृहीत्वा