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बर्ग-प्रथम] ( १३२ )
[निरयावलिका raru-rrr-rrr-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.--- साथ, संपरिवुडा-संपरिवृत हुए अर्थात् घिरे हुए, सविडोए- सर्व ऋद्धियों से युक्त, जाव-यावत्, रवेणं-वाद्य-यंत्रों के स्वरों से युक्त होकर, सरहितो संएहितो नयरेहिन्तो-अपने-अपने नगरों से, पडिनिवखमंति-निकलते हैं और, पडिनिक्खम इत्ता-निकल कर, जेणेब अंगा जणवए-जहां अंग जनपद था, जेणेव चंपा नयरी-जहां चम्पा नगरी थो, जेणेव कूणिए राया-जहां राजा कोणिक था, तेणेव उवागया-वहां पाए, आकर, जाव-यावत्, करयल० बद्धाति-दोनों हाथ जोड़ कर जय-विजय शब्दों द्वारा वधाई देते हैं ।।७।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् वे कालादि दश कुमार, राजा कोणिक की आज्ञा को सुनकर अपने-अपने राज्यों में आये । राज्य में आकर प्रत्येक राज कुमार ने स्नान किया। यावत् तीन-तीन हजार हाथियों रथों और तीन करोड़ मनुष्यों (सैनिकों) के साथ संपरिवृत (घिरे) होकर, सर्व ऋद्धि (राज्य वैभव) से युक्त होकर यावत् वाद्य-यंत्रों के शब्दों के साथ अपने-अपने नगरों से निकलते हैं, निकल कर जहां अंग देश की राजधानी चम्पा नगरी थी, वहां कोणिक राजा के पास आते हैं, आकर यावत् दोनों हाथ जोड़कर जयविजय स्वर से वधाई देते हैं कि महाराज आपकी जय हो ७८।
टीका-प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि राजा कोणिक की आज्ञा का पालन करते हुए कालादि दसों भ्राता अपने-अपने नगरों से सैनिक दलबल के साथ अंग देश की राजधानी चम्पा नगरी में आते हैं । प्रस्तुत सूत्र से यह सिद्ध होता है कि मगध देश अलग था, जिस की राजधानी पाटलीपुत्र थी। अंग देश मगध का एक हिस्सा था चम्पा एक प्रमुख नगरो थी । जैन इतिहास की अनेक कथाओं में इसका वर्णन है । इस सूत्र में मगध-साम्राज्य के राजतन्त्र की विशाल सीमा का पता चलता है। प्रत्येक राज कुमार की सैनिक शक्ति, वैभव प्रभुसत्ता का वर्णन भी इस सूत्र से मिलता है। प्राचीन काल में छोटे-छोटे राजा बड़े राजा की आधीनता स्वीकार कर लेते थे। यही बात कोगिक राजा के इतिहास से ज्ञात होती है ।।७।।
उत्थानिका-तब कोणिक राजा ने क्या किया, अब सूत्रकार इस विषय में कहते हैं
मूल-तएणं से कूणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ती एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-चाउरंगिणि सेणं संनाहेह, ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह, जाव पच्चप्पिणंति ॥७॥