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निरयादलिका]
(१३१)
[बर्ग- प्रथम
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(राजकुमार) स्नानादि करके यावत् शुद्ध होकर; हस्ति-स्कन्ध को प्राप्त होना, अर्थात् हाथियो पर सवार हो जाता प्रत्येक राज कुमार तीन-तीन हजार हाथियों के साथ, तीन-तीन हजार रथों के साथ तीन-तीन हजार घोड़ों के साथ और तीन-तीन करोड़ मनुष्यों (सैनिकों) से परिवृत होकर सर्व-ऋद्धि सहित यावत् नाना प्रकार के वाद्य-यन्त्रों के शब्दों के साथ अपने-अपने नगरों से बाहर आओ बाहर आकर मेरे पास पहुंच जाओ ॥७७।।
टीका-प्रस्तुत सूत्र में राजा कोणिक ने हाथी, घोड़ों, रथों व सैनिकों सहित तैयार होकर आने को कहा है। प्रस्तत सत्र से यद्ध से पहले की तैयारी का वर्णन भी ध्वनित होता है कि कैसे प्राचीन राजा हाथी पर बैठकर, विभिन्न वाद्य-यन्त्रों के शब्दों के स्वर गंजाते हए यद्ध के मैदान में आया करते थे। यहां कोणिक ने तैयार होकर हाथी पर बैठकर अपने समीप आने की आज्ञा अपने कालादि दस कुमारों को दी है। इस सूत्र से यह भी प्रकट होता है कि प्रत्येक राज-कुमार की अपनी-अपनी सेना हे'ती थी। इस बारे में वृत्तिकार ने स्पष्ट किया है। गच्छत यूयं स्वराज्येषु निजनिजसामग्रया संनह्म समागन्छत मम समीपे अर्थात् आप अपने-अपने राज्य में जाओ और अपनी अपनी युद्ध-सामग्री से सज कर मेरे पास पहुगो ।।७७।।
... मूल-तए णं ते कालाईया दस कुमारा कुणियस्स रन्नो एयमर्थ सोच्चा सएस सएसु रज्जेसु पत्तेयं पत्तेयं व्हाया जाव तिहिं मणुस्सकोडोहिं सद्धि संपरिवुडा सव्विड्ढीए जाव रवेणं सएहितो सहितो नयरहितो पडिनिक्खमंति पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंगा जणवए, जेणेव चंपा नयरी जेणेव कूणिए राया तेणैव उवागया, करयल० जाव वद्धावेति ॥७॥
छाया-ततः खलु ते कालादिका दशकुमाराः कूणिकस्य राज्ञ एतमर्थ श्रुत्वा स्वकेष स्वकेष राज्येष प्रत्येकं प्रत्येकं स्नाताः, यावत् तिसृभिर्मनष्यकोटिभिः सार्धं संपरिवृता यावत् रवेणं स्वकेभ्यः स्वकेभ्यो नगरेभ्यः प्रतिनिष्कामन्ति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रव अङ्ग जनपदः, यत्रैव चम्पानगरी, यत्रैव चम्पानगरी, यत्रव कूणिको राजा तत्रैवोपागतः करतल० यावद् वर्धयन्ति ।।७८।।
पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, ते कालाईया दस कुमारा-वे काल आदि दस कुमार, कूणियस्स रनो एयमढे सोच्चा-कोणिक राजा के इस अर्थ -आज्ञा को सुनकर, सएसु सएसु रज्जेसुअपने-अपने राज्य में आए, पत्तेयं पत्तेयं हाया-और आकर प्रत्येक राजकुमार ने स्नान किया, स्नान करके, जाव-यावत्, तिहि मणुस्सकोडीहिं सद्धि - तीन तीन करोड़ मनुष्यों (सैनिकों) के