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वर्ग-प्रथम]
(१२८)
[निरयावलिका
छाया ततः खलु स कूणिको राजा तस्य दूतस्यान्ति के एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य आशुरक्तः कालावीन् दशकुमारान् शब्दयित्वा एवमवादीत-एवं खलु देवानुप्रियाः ! वेहल्लः कुमारो मम असंविदितः खलु सेचनकं गन्धहस्तिनम् अष्टादशवक हारम् अन्तपुरं सभाण्डं च गृहीत्वा चम्पातो निप्कामति, निष्क्रम्य वैशालीम आर्यक चेटकराजम उपसंपद्य विहरति । ततः खल मया सेचनकस्य गन्धहस्तिनः अष्टादशवक्रस्य हाररय अर्थाय दूताः प्रेषिता.तेच चेटकेन राज्ञा अनेन कारणेन प्रतिषिद्धाः, अथोत्तरं च खलु मम तृतीयो दूतः असत्कारित तं अपद्वारेण निष्कासयति, तच्छ्रे या खलु देवानुप्रियाः ! अस्माकं चेटकस्य राज्ञः युक्तं ग्रहीतुम् ।।७।।
___ पदार्थान्वय:-तएणं- तत्पश्चात्, से कूणिए राया- वह कोणिक राजा, तस्स दूयस्स अन्तिए-उस दूत के समीप से, एयमढं सोच्चा-इस अर्थ को सुनकर, निसम्म-विचार कर, आसुरत्ते-आशुरक्त हुए या क्रोधित होकर, कालादीए दस कमारे सद्दावेई, सद्दावेत्ता-कालादि दश कुमारों को बुलाता है बुलाकर, एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा; एवं खलु देवाणुप्पियाइस प्रकार निश्चय ही, हे देवानुप्रिय !, वेहल्ले कुमारे-वेहल्ल कुमार, ममं असंविदितेण-मुझे बिना बताये, सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसबंक हारं-सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाले हार को लेकर अपने अंतपुर परिवार के साथ, सभंडं च गहाय-अपने साज सामान को साथ लेकर, चम्पाओ निक्खमह निक्खमित्ता-चम्पा नगरी से निकल गया है और निकल कर, वेसालि-. वैशाली में, जाव-यावत्, अज्जगं चेडगरायं उवसंपज्जित्ताणं विहरई-नाना पार्य चेटक की गरण ले कर विचरता है, तएणं मए-तो इस समाचार को सुनकर मैंने, सेयणगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसबंकस्स हारस्स अट्ठाए-सेचनक गन्धहस्ती और अठारह लड़ियों वाले हार के लिए, या पेसिया-दो दूत भेजे, ते य-वह, चेडएण रन्ना-चेटक राजा ने, इमेणं कारणेणं-इस कारण से, पडिसेहित्ता-प्रतिषेध करके वापिस लौटा दिए, अदुत्तरंच णं- इतना ही नहीं, किन्तु अथवा, मम तच्चे दूए-मेरे तीसरे दूत को, असक्कारिए-सत्कार न देते हुए. असंमाणिए-असम्मान देते हुए, अवद्दारेणं निच्छुहावेइ-अपद्वार से अर्थात् नगर के दुर्गन्धित छोटे मार्ग से निकलवा दिया, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया-तो निश्चय ही हे देवानुप्रिय यही श्रेय है, अम्हं-हमें, चेडगस्स रन्नोचेटक राजा से, जुत्तं गिहित्तए-युद्ध के लिए निकलना चाहिए अर्थात् युद्ध के लिए तैयार हो जाना चाहिये ।।७।।
मूलार्थ - तत्पश्चात् कोणिक राजा ने उस दूत से इस बात को सुना, फिर विचार किया । यावत् कोध में आकुल-व्याकुल होकर काल आदि दश कुमारों को बुला कर इस प्रकार कहने लगा "हे देबानुप्रिय ! निश्चय ही वेहल्ल कुमार मुझे सूचित किये बिना सेचनक गन्धहस्ती, अठारह लड़ियों वाले हार को, अपने साज-सामान समेत अन्तःपुर के साथ चम्पा नगरी से निकला, निकल कर, वैशाली में यावत् नाना चेटक के आश्रित