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निरयापलिका]
(१२७)
[वर्ग - प्रथम
उस दूत का वह राजा चेटक असत्कार करता है, असम्मान करता है अपमान करके अपद्वार से बाहिर निकाल देता है, अर्थात् दुर्गन्धी भरे जल मार्ग से दूत को बाहिर निकालता है।
टोका-- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि राजा कोणिक के दूत के मुख से संदेश सुनकर, श्रमणोपासक राजा चेटक को भी क्रोध आ गया। उसने राजा कोणिक की युद्ध की चुनौती स्वीकार कर ली। साथ में स्पष्ट कह दिया कि जब तक राजा कोणिक आधा राज्य प्रदान नहीं करता, तब तक मैं सेचनक गन्धहस्ती, अठारह लड़ियों वाला हार ब वेहल्ल कुमार किसी कीमत पर वापिस नहीं भेजे जायेंगे। अब उसने दूत को सत्कार-सन्मान न देकर, नगर के अपद्वार से वापिस लौटा दिया । अपद्वार का अर्थ है वह मार्ग, जहां से नगर का दुर्गन्धि भरा जल गुजरता है, राजा चेटक ने युद्ध की चुनौती स्वीकार करके शरणागत की रक्षा का कर्तव्य निभाया इसी कारण से राजा चेटक ने दूत से कहा
न अप्पिणामि णं कुणियस्सरन्नो सेयणगं अट्ठारसबंक हारं वेहल्लं च कुमारं नो पेसेमि एस । गं जुद्धसज्जे चिट्ठामि-इस वाक्य से चेटक राजा की शूरवीरता ध्वनित होती है। राजा चेटक ने दूत से कहा हे दूत । तूं अवध्य है इसलिए मैं तुझे नहीं मारूंगा पर अपने स्वामी के पास मेरा संदेश ज्यों का त्यों पहुंचा देना ॥७४।।
उत्थानिका- इसके बाद क्या होता है इसका वर्णन सूत्रकार ने आगे किया है
- मूल-तएणं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिया ! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदितेणं सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसबंकं हारं अतेउरं सभंडं च गहाय चंपातो पडिनिक्खमइ, पडिनिवखमित्ता वेसालि अज्जगं चेडगरायं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
तएणं मए सेयणगस्स गन्धहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्म अंट्ठाए या पेसिया, ते य चेडएण रण्णा इमेणं कारणेणं पडिसेहिया अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए, तं अवद्दारेणं निच्छुहावेइ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए ॥७॥