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________________ बर्ग-प्रथम] ( १२६) [निरयावलिका arrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr-.-.-.-.-.कि दूत को प्राचीन काल से ही अवध्य व सम्मान जनक स्थान मिलता रहा है । दूत मित्र के पास भी जाता है शत्र के पास भी। हर स्थान पर वह अपने स्वामी का संदेशबाहक बन कर जाता है। राजा चेटक के प्रति दूत का अभद्र व्यवहार उसकी स्वेच्छा से नहीं,वह तो राजाज्ञा का पालन मात्र है ।।७३।। उत्यानिका-तव चेटक राजा ने दूत से क्या व्यवहार किया, अब सूत्रकार उसका कथन करते हैं। ___ मूल-तएणं से चेडए राया तस्स दूयस्स अतिए एयमलैं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव साहट्ट एवं वयासी-न अप्पिणामि णं कूणियस्स रन्नो सेयणगं अट्ठारसबंकं हारं, वेहल्लं च कुमारं नो पेसेमि, एस णं जुद्धसज्जे चिट्ठामि । तं दूयं असक्कारियं असंमाणियं अवद्दारेणं निच्छु-. हावेइ ॥७४॥ छाया-ततः खलु स चेटको राजा तस्य दूतस्यान्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य आशुरक्तः यावत् संहृत्य एवमवादीत्-नार्पयामि खुलु कूणिकस्य राज्ञ सेचनकमष्टादशव हारं वेहल्लं च कुमारं नो प्रेषयामि, एष खलु युद्धसज्जस्तिष्ठामि । तं दूतमसत्कारितमसम्मानितमदद्वारेण निष्कासयति ।।७४।। पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, से चेडए राया-वह चेटक राजा, तस्स दूयस्स अंतिए - उस दूत के समीप से,एयमझें सोच्चा-इस अर्थ (बात)को सुनकर, निसम्स-विचार कर,आसुरुत्तेक्रोधित हुआ, जाव साहटु-यावत् मस्तक पर तीन भृकुटी चढ़ाता हुआ, एवं वयासी- इस प्रकार बोला, न अप्पिणामि गं-नहीं अर्पण करता हूं, कूणियस्स रन्नो - कोणिक राजा को, सेयणगं अट्ठारसवंक हारं-सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों बाला हार को, वेहल्ल कुमारं नो पेसेमिवेहल्ज कुमार को भी वापिस नहीं भेजता, एस णं जुद्ध सज्जे चिट्ठामि परन्तु युद्ध के लिये सुसज्जित . होकर आता हूं ऐसा कहकर, तं दूयं असक्कारियं-उस दूत का असत्कार करता है, असंमाणियं असम्मान या अपमान करता है, परन्तु, अवदारेणं निच्छुहाबेइ- अपद्वार से बाहर निकलवा देता है ।७४॥ मूलार्थ-तत्पश्चात् वह राजा चेटक उस दूत के द्वारा इस अर्थ (बात) को सुनकर, विचार करता है विचार करके क्रोधित होता हुआ यावत् मस्तक पर तीन भृकुटी चढ़ाता हुआ, इस प्रकार कहने लगा-"मैं कोणिक राजा के पास सेचनक गंधहस्ती अठारह लड़ियों वाला हार व वेहल्ल कुमार को वापिस नहीं मेज सकता। हां, मैं युद्ध के लिए - सुसज्जितहोकर आता हूं।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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