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निरयावलिका)
(१२५)
[ वर्ग-प्रयम
चेडगस्स रन्नो वामेणं पाएणं पायपीठं अक्कमइ, अक्कमित्ता, आसुरुत्ते कंतग्गेण लेहं पणावेइ तं चेव सबलखंधावारे णं इह हव्वमागच्छइ ॥७३॥
छाया-ततः खलु सः दूतः करतल० तथैव यावद् यत्रैव चेटको राजा तत्रैवोपागच्छति उपागत्य करतल. यावद् वर्धयति, वर्धयित्वा एवमवादीत्-एषा खलु स्वामिन् ! मम विनयप्रतिपत्ति', इदानीं कणिकस्य राज्ञः आज्ञप्तिः चेटकस्य राज्ञो वामेन पादेन पादपीठमानामति, आक्रम्य आशुरक्तः कुन्ताग्रेण लेखं प्रणाययति तदेव सबलस्कन्धावारः खलु इह हव्यमागगच्छ त ॥७३॥
पदार्थान्वय:-तएणं-तत्पश्चात्, से दूए-वह दूत, करयल०-दोनों हाथ जोड़कर, जाव-यावत्, तहेव-उसी प्रकार; जेणेव चेडए राया-जहां चेटक राजा था, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता-वहां आता है और आकर, करयल० जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-दोनों हाथ जोड़ कर वधाई देता हुअा, इस प्रकार बोला, एस णं सामी-हे स्वामी ! यह, मम विणय पडिवत्तीयह मेरी विनय प्रतिप्रत्ति है, इयाणि कुणियस्स रन्नो आणत्तो- अब कोणिक राजा की आज्ञा का पालन करता हूं ऐसा कहकर, चेडगस्स रन्नो चेटक राजा के, वामेणं पारणं- बायें पैर से, पायपीढं-पादपीठ सिंहासन को, अक्कमइ-स्पर्श करता है अर्थात् ठोकर मारता है, ठोकर मार कर, आसुररुत्ते-आशुरक्त क्रोधित होता हुआ, कुंतग्गेण लेहे पणावेइ-कुंताग्र से लेख को देता है, तं चेव-और इस प्रकार से, सबलखन्धावारेणं-सबल पंदल आदि चतुरंगिणी सेना सहित, इह हव्वमागच्छइ-यहां शीघ्र पा रहा है ॥७३।। .
मूलार्थ तत्पश्चात् वह दूत करतल (दोनों हाथ जोड़कर) यावत् उस प्रकार जहां चेटक राजा था, वहां आता है, वहां आकर जहां चेटक राजा था वहां आता है आकर यावत् दोनों हाथ जोड़कर जय-विजय से वधाई देता हुआ इस प्रकार कहने लगा"हे स्वामी ! यह तो मेरी विनय भक्ति है । अब राजा कोणिक की आज्ञा का पालन करता हं। ऐसा कह कर राजा चेटक के सिंहासन को बांए पैर से छूता है, छूकर आशुरक्त होता हुआ, कुंतांग्र से लेख को अर्पण करता है। बाकी उसी प्रकार सबल-पैदल आदि चतुरगिनी सेना सहित राजा कोणिक शीघ्र ही यहां आ रहा है ॥७३॥
___टीका-प्रस्तुत सूत्र में राजा कोणिक के सन्देश का वर्णन है जिसे राजा चेटक तक दूत अपने कर्तव्य का पालन करते हुए पहुंचाता है । दूत अपनी ओर से राजा चेटक का सम्मान करता हुआ वहीं सन्देश देता है जो उसके स्वामी ने उसे देने को कहा है । दूत की कर्तव्य परायणता निडरता स्वामी भक्ति का स्पष्ट चित्रण इस सूत्र में किया गया है। प्रस्तुत सुत्र से यह भी सिद्ध है