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वर्ग-प्रथम]
( १२४)
[निरयावलिका
मूलाथ-तत्पश्चात् वह राजा कोणिक, उस दूत के पास से इस अर्थ को सुनकर विचार कर आशुरक्त यावत् क्रोध से आकुल-व्याकुल (दांत पीसता) हुआ, तृतीय दूत को बुलाता है, बुलाकर इस प्रकार आज्ञा देता है 'हे देवानुप्रिय ! तुम वैशाली नगरी जाओ वहां चेटक राजा के सिंहासन को बांयें पैर से ठोकर मारना, मार कर कुन्ताग्र (बरछी के अग्रभाग से) यह लेख उसे देना, देकर आशुरक्त यावत् आकुल-व्याकुल होना, मस्तक में भृकुटी चढ़ाकर, चेटक राजा को इस प्रकार कहना अरे ओ मृत्यु चाहने वाले लक्ष्मीरहित चेटक ! कोणिक राजा आज्ञा देता है कि तुम कोणिक राजा को सेचनक गंधहस्ती
और अठारह लड़ियों वाला हार लौटा दो और वेहल्ल कुमार को वापिस मेज दो। (अथवा) नहीं तो युद्ध के लिए सुसज्जित हो जाओ। वह कोणिक राजा हाथी-घोड़ों पालकी आदि वाहनों और पैदल सेना के साथ पड़ाव डालता हुआ शीघ्र ही यहां आ रहा है ॥७२॥
टीका-प्रस्तुत सूत्र में कोणिक राजा द्वारा अपने तीसरे दूत से वार्तालाप का वर्णन है राजा कोणिक, राजा चेटक के इन्कार करने पर किस तरह क्रोधित होता है, इसका स्पष्ट चित्रण शास्त्रकार ने किया है । राजा कोणिक अपने तीसरे दूत से राजा चेटक को स्पष्ट सूचित करता है कि या तो वह सब वस्तुओं और वेहल्ल कुमार को वापस लौटा दो या फिर युद्ध के लिये तैयार हो जाये।
प्रस्तुत सूत्र में (हं भो) फटकार के अर्थ में लिया गया है। 'अपत्थिय थपस्थिया' पद का अर्थ है मृत्यु को आमन्त्रण देने वाला । जिस मृत्यु की कोई इच्छा नहीं रखता उस मृत्यु की इच्छा करने वाला । कुन्ताग्रेणं लेहं पणावेहि-इस सूत्र द्वारा कोणिक राजा द्वारा प्रेषित संदेश को बरछे की नोक पर टांग कर प्रस्तुत करने का उल्लेख है। इस पद द्वारा यह सिद्ध होता है कि आर्य लोग लिखने की कला प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के काल से ही जानते थे। इस सूत्र में राजा कोणिक अपने नाना वैशाली नरेश चेटक को युद्ध की धमकी अपमान जनक शब्दों में देता है । इस सूत्र में उस समय की प्राचीन युद्ध-पद्धति का वर्णन किया गया है।
उस्थानिका-आज्ञा पालक दूत ने फिर क्या किया अब सूत्रकार इसी विषय में कहते हैं । ... मूल-तएणं से दूर करयल० तहेव जाव जेणेव चेडए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल० जाव वद्धावेई, वद्धावित्ता एवं वयासी एस णं सामी ! ममं विणयपडिवत्ती, इयाणि कूणियस्स रन्नों आणत्तो