________________
निरयावलिका)
( १२३)
[बर्ग-प्रथम
++++++
कतार पेसेहि, अहवा जुद्धसज्जा चिट्ठाहि, एस णं कूणिए राया सबले सवाहणे सखंधावारे णं जुद्ध सज्जे इह हव्वमागच्छइ ॥७२॥
छाया-ततः खलु स कणिको राजा तस्य दूतस्यान्तिके एतमर्थं श्रुत्वा निशम्य आशुरक्तः यावन्मिसिमिसी-कुर्वन् तृतीय दूतं शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत-गच्छ खल त्वं देवानुप्रिय ! वैशाली नगरी चेडकस्य राज्ञो वामेन पादेन पादपीठमानाम, आक्रम्य कुन्ताग्रेण लेखं प्रणायय; प्रणाय्य आशुरक्तो यावत् मिसिमिसीकुर्वन् त्रिवलिका ध्रुटि ललाटे संहत्य चेटकं राजानमेवं वद- हं भो चेटकराजाः ! अप्राथितपार्थका: ! दुरन्त -यावत्परिवजिताः ! एषः खलु कूणिको राजा आज्ञापयर्यातप्रत्यर्पयत खलु कूणिकस्य राज्ञः सेचनकं गन्धहस्तिनमष्टादशवकच हारं वेहल्लं च कुमारं प्रेषयत, अथवा युद्धसज्जा तिष्ठत । एवं खलु कृणिको राजा सबलः सवाहनः संस्कन्धावारः खलु युद्धसज्ज इह हव्यमाच्छति ।।७२।।
पदार्थान्क्य:-तएणं-तत्पश्चात्, से कणिए राया-वह राजा कोणिक, तस्स दूयस्स अन्तिए-उस दूत के समीप से, · एयमटु सोच्चा- इस अर्थ को सुनकर, निसम्म-विचार करके, आसुरुत्ते -क्रोधित होकर, जाव-यावत्, मिसिमिसेमाणे-क्रोध से आकुल व्याकुल होता हुआ, तच्चं दूयं सद्दावेइ-तीसरे दूत को बुलाता है और, सद्दावित्ता-बुलाकर, एवं वयासि- इस प्रकार कहने लगा, गच्छ णं तुम देवाणुप्पिय - हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ, वेसालीए नयरीए- वैशाली नगरी में, चेडगस्सरनो-वहां चेटक राजा के, वामेणं पाएणं-वायें पैर से, पायपीढं-पादपीठ सिंहासन को, अक्कमाहि अमित्ता-ठोकर मारना, और ठोकर मार कर, कुंतग्गेणं लेहं पणावेहि, पणावेहित्ताकुंताग्र पर अर्थात् बरछी की नोक से लेख को देना, और देकर, आसुरुत्ते-क्रोधित होकर, जावयावत्, मिसिमिसेमाझे-दांत पीसते हुए, तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट-मस्तक पर तीन भृकुटी चढ़ाकर, चेडग रायं एवं क्यासी-चेटक राजा को इस प्रकार कहना, हं भो- अरे ओ, चेडग राया-चेटक राजा, अपस्थियपथिया- मृत्यु की प्रार्थना करने वाले, दुरत-दुष्ट, जाव-यावत्, परिवज्जिया-लक्ष्मी रहित, एस णं कणिए राया आणवेइ-कोणिक राजा यह प्राज्ञा करता है, पच्चप्पिणाहि-वापिस लौटा दो, कुणियस्स रन्नो-कोणिक राजा को, सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसबकं च हारं-सेचनक गंधहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार, वेहल्लं कुमारं पेसेहि- और वेहल्ल कुमार को वापिस भेज दो, अहवा जुद्ध सज्जो चिट्ठाहि-अन्यथा युद्ध के लिए सुसज्जित होकर तैयार हो जाओ, एस णं कूणिए राया-यह कोणिक राजा सबले अत्यन्त वलबान् (हाथियों सहित) सवाहणे-वाहन सहित अर्थात् पालकी आदि सवारी सहित, सखन्धावारे-पंदल सैनिक दल के साथ पड़ाव करता हुआ, जुद्धसज्जे-युद्ध के लिये तैयार होकर, इह हव्वामगच्छइ-यहां शीघ्र ही आ रहा है ।।७२।।