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निरयावलिका)
(११६)
[बर्ग-प्रथम
. तत्खल ययं स्वामिन् ! राजकुलपरम्रागतां स्थितिमलोपयन्तः सेचनकं गन्धहस्तिनम् अष्टादशवक्र च हार कणिकाय राज्ञे प्रत्यर्पयत, वेहल्लं कमारं प्रेषयत
ततः खलु स दूतः कूणिकस्य राजस्तथैव यावद् वर्धयित्वा एवमवादीत्-एवं खलु स्वामिन् ! कूणिको राजा विज्ञापयति-यानिकानीति यावत् वेहल्ल कुमारं प्रषयत ॥६६॥
पदार्थान्वय'-तएर्ण-तत्पश्चात्, से कणिए राया- कूणिक राजा ने, दुच्च पि दयं सहाबित्ता-दूसरे दूत को बुला कर, अपि-संभावना अर्थ में है, एवं वयासी-इस प्रकार कहा, गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया - हे देवानुप्रिय तुम जाओ, वेसालि नरि-वैशाली नगरी को, तत्थ णं तुम मम अज्जगं-वहां तुम मेरे आर्य नाना, चेडगं रायं-चेटक राजा को, जाव-यावत्, एवं वयासो- इस प्रकार कहना, एवं खलु सामो-हे स्वामी निश्चय हो, कणिए राया विन्नवेइकोणिक राजा इस प्रकार कहता है, जाणि काणि रयणाणि-जो कोई भी रत्न, समुप्पज्जन्तिराज्य में उत्पन्न होते हैं, सव्वाणि ताणि-वे सब, रायकुलगामोणि- राज्य-कुल में ही पहुंचाये जाते हैं, सेणियस्स रन्नो-श्रेणिक राजा के, रज्जसिरि करेमाणस्स-राज्य श्री को करते हुए के, पालेमाणस्स-पालन करते हुए, दूबे रयणा समुप्पन्ना-दो रत्न उत्पन्न हुए, तं जहा-जैसे कि, सेवणए गन्धहत्थी, अट्ठारसबंके हार-सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों काला वक्र हार, तणं तुम्भ सामो -तो आप हे स्वामो, रायकुलपरंपरागय ठिइयं-राज्य कुल की परम्परागत स्थिति को, अलोवेमाणा-लुप्त न करते हुए, सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसबंक च हार-सेचनक गन्धहस्ती पौर अठारह लड़ियों वाला हार, कुणियस्स रन्नो पच्चप्पिणह-राजा कूणिक को वापिस लौटा दो वेहल्ल कुमारं पेसेह-और वेहल्ल कुमार को भी वापिस भेज दो।
तएणं से दूए-तदनन्तर वह दूत, कुणियस्स रन्नो-राजा कूणिक का, तहेव जाव वद्धा. वित्ता-उसी प्रकार से वर्धापन देकर, एवमवादीत्-इस प्रकार बोला, एवं खलु सामी-इस
प्रकार हे स्वामिन् ! कूणिए राया विन्नवेइ-राजा कूणिक पापको सूचित करता है, जाणि काणित्ति-जैसे भी हो वैसे, वेहल्लं कुमारं पेसेह-वेहल्ल कुमार को वापिस लौटा दो ॥६९।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् वह कोणिक राजा दूसरे दूत को बुलाता है बुलाकर इस प्रकार कहता है -“हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे नाना राजा चेटक को यावत् इस प्रकार कहो
हे स्वामी ! निश्चय ही राजा कूणिक इस प्रकार कहता है कि जो कोई रत्न राज्य में उत्पन्न होते हैं वे सब राज कुल में पहुंचाये जाने वाले होते हैं । श्रेणिक राजा के राज्य काल में दो रत्न उत्पन्न हुए थे सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार ।