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वर्ग-प्रथम]
(११४)
निरयावलिका
श्रावस्ती नगरी में दूत भेजने का वर्णन है यहां वही वर्णन जानना चाहिये ।
इस सूत्र में दूत की विनम्रता, आज्ञा-पालन स्वामी भक्ति व कर्तव्य-परायणता का अच्छा दिग्दर्शन कराया गया है । दूत वही कहता है जो कोणिक राजा ने आदेश दिया था, दूत की तैयारी के लिये चितसारथी का प्रकरण यहां दोहराया गया है ।। ६६।।
मूल-तए णं से चेडए राया तं दूयं एवं वयासी-जह चेव णं देवाणुप्पिया ! कणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तए तहेव णं नेहरले वि कुमारे सेणियस्स रन्नो पुत्ते, चेल्लणाए देवीए अत्तए मम नत्तुए, सेणिएणं रन्ना जीतेणं चैव हल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थि अट्ठार सबं के हारे पुवदिन्ने, तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रज्जस्स य रहस्स य जणवयस्स य अद्धं दलयइ तो णं सेयणयं गंधहत्थि अट्ठार सबंकं च हारं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामि, नेहल्लं च कुमारं पेसेमि । तं दूयं सरकारेइ संमाणेइ पडिविसज्जेइ ॥६७॥
छाया-ततः खलु स चेटको राजा तं दूतमेवमवादीत् यथैव खलु देवानप्रिय ! कणिको राजा श्रोणिकस्य राज्ञः पुत्रः, चेल्लनायाः देव्या आत्मजः मम नप्तकः, तथैव खल वैहल्लोऽपि राज्ञः पुत्रः, चेल्लनाया देव्या आत्मजो, मम नप्तकः । श्रेणिकेन राज्ञा जीवता चैव बेहल्लाय कुमाराय सेचनको गन्धहस्ती अष्टादशवको हारः पूर्वदित्तः, तद् यदि खलु कूणिको राजा वेहल्लाय राज्यस्य च राष्ट्रस्य च जनपदस्य चाद्धं ददाति तदा खलु सेचनक गन्धहस्तिनम् अष्टादशवकच हारं कूणिकाय राजे प्रत्यर्पयामि, वेहल्लं च कुमारं प्रेषयामि । तं दून सत्करोति सम्मानयति प्रतिविसर्जति ।। ६७।।
पदार्थान्वयः-तएणं - तत्पश्चात्, से चेडए राया--वह चेटक राजा, तं दूयं-उस दूत को, एवं वयासी-इस प्रकार बोला, जह चेव णं देवाणप्पिया-जैसे कि हे देवानुप्रिय जिस प्रकार, कणिए राया सेणियस्स रन्नो पत्ते-कोणिक राजा, श्रेणिक राजा का पुत्र है, चेल्लणाए देवीए अत्तए चेलना रानीका आत्मज है, ममं नत्तए-मेरा नाती (दोहता) है, तहेवणं-वैसे ही, वेहल्ले वि कुमारेवेहल्ल कुमार भी, सेणियस्स रन्नो प्रत्ते-श्रेणिक राजा का पुत्र है. चेलणाए देवीए अत्ता-चेलना देवी का आत्मज है, मम नत्तुए-और मेरा बोहता है। सेणिएणं रनो-श्रेणिक राजा ने, जीवन्तेणंचेवअपने जीवन-काल में ही, वेहल्लस्स कुमारस्स-वेहल्ल कुमार को, सेयणगे गंधहत्यी-सेचनक गन्धहस्ती, अट्ठारसबंके य हारे पुन्वदिन्ने-अठारह लड़ियों वाला वक्र हार पहले दिया था, तंजइ णं