SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निरयावलिका) (११५ ) [वर्ग-प्रथम तो यदि, कृणिए राया-कोणिक राजा, वेहल्लस्स-वेहल्ल कुमार को, रज्जस्स य रटुस्स य जणवयस्सय-राज्य, राष्ट्र और जनपद का, अद्धं दलयइ-आधा भाग दे दे, तो णं अहं-तो मैं, सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसबंक हारं च-सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला वक्र हार, कृणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामि-कोणिक राजा को लौटा सकता हूं, वेहल्लं च कुमार-और वेहल्ल कुमार को भी, पेसेमि-भेजता हूं। ऐसा कह कर, तं दूयं-उस दूत, को, सक्कारेइ संमाणे इ-सत्कार व सम्मान देता है और, पडिविसज्जेइ - विसर्जन (विदा) करता है ।।६७॥ · मूलार्थ-तत्पश्चात् वह राजा चेटक उस दूत को इस प्रकार कहने लगा "हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार राजा कोणिक, राजा श्रेणिक का पुत्र, महागनी चेलना का आत्मज और मेरा दोहता है उसी तरह वेहल्ल कुमार भी श्रेणिक राजा का पुत्र व रानी चेल्लना का आत्मज है और मेरा दोहता है। श्रेणिक राजा ने अपने जीवन-काल में ही वेहल्ल कुमार को सेचनक गंधहस्ती व अठारह लड़ियों वाला वक्र हार प्रदान किया था। अगर राजा कोणिक इन दोनों वस्तुओं को प्राप्त करना चाहता है तो वह वेहल्ल कुमार को आधा राज्य राष्ट्र और जनपद प्रदान करे। ऐसा करने पर कोणिक को सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला वक़ हार मैं वापिस कर दूंगा। इसके साथ वेहल्ल कुमार को भी वापिस भेज दूंगा। इस कथन के बाद वह दूत का सम्मान करता है. सत्कार करता है और दूत को विजित (वापिस) भेजता है । टीका-जब दूत ने वैशाली गणराज्य के राजा चेटक से सेचनक हाथी व अठारह लड़ियों वाला हार और वेहल्ल कुमार की वापसी के बारे में अपने स्वामी राजा कोणिक का संदेश दिया तो राजा चेटक ने अपनी न्याय-प्रियता, सज्जनता, निडरता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, स्पष्ट वादिता का सहारा लिया। राजा चेटक ने परम्परागत ढंग से दूत सम्बन्धी सभी कर्तव्यों का पालन किया, दूत का मान-सम्मान भी किया। साथ में यह भी कहलाकर भेजा कि अगर राजा कोणिक इच्छित वस्तुएं व वेहल कुमार की वापसी चाहता है तो वह अपना प्राधा राज्य वेहल्ल कुमार को प्रदान कर दे। वस्तु वही लौटाई जाती है जो दी जाये। जो वस्तु दी ही नहीं गई उसे वापिस मांगना निरर्थक है । फिर वेहल्ल कुमार ने अपने नाना के यहां इसी लिये शरण ग्रहण की थी क्योंकि वह जानता था कि मेरे नाना न्याय-प्रिय आदर्शवादी व सत्यवादी राजा हैं। ऐसे गुण व शक्ति-सम्पन्न राजा की शरण हर ढंग से कल्याणकारी है। दूत के वेहल्ल कुमार व सेचनक गन्धहस्ती अठारह लड़ियों वाला हार मांगने पर राजा चेटक ने अपनी न्याय-प्रियता का प्रमाण देते हुए कहा कि मेरे लिये कोणिक और वेहल्ल कुमार
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy